मेइजी संविधान के प्रमुख प्रावधान
मेइजी संविधान सन् 1888 ई० तक बनकर तैयार हो चुका था और अगले वर्ष सन् 1889 ई० में इसे लागू कर दिया गया। नये विधान में जापानी जनता की सम्राट के प्रति अन्य भक्ति की भावना का आदर करते हुए सम्राट को शासन का अधिपति व मुखिया बनाया गया, उसकी स्थिति पवित्र व अनुल्लंघनीय' रखी गई। विविध उच्चाधिकारियों की नियुक्ति, उनका वेतन निर्धारण तथा उनकी पदच्युति का अधिकार सम्रट को था। युद्ध व शांति की घोषणा सम्राट हो कर सकता था। विशेष परिस्थितियों में सम्राट अध्यादेश जारी कर सकता था। कोई भी विष "येक तब तक प्रभावकारी नहीं हो सकता था जब तक सम्राट अपने हस्ताक्षरों द्वारा उसे स्वीकृति प्रदान न कर दें। सम्राट अपने इन अधिकारों का प्रयोग दो वैधानिक परामर्शदात्री समितियों (मंत्रिपरिषद् तथा प्रिवी कौंसिल जिनका गठन विधान के पूर्व हो चुका था) के माध्यम से करते थे। मंत्रि-परिषद् और प्रिवी कौंसिल के सदस्यों को सम्राट मनोनीत करता था और वे उसी के प्रति उत्तरदायी होते थे। पार्लियामेंट के प्रति उन्हें उत्तरदायी नहीं बनाया गया था, सम्राट के विश्वास प्राप्त रहने तक ही ये लोग अपने पदों पर रह सकते थे।
इस नये विधान की सबसे बड़ी बात यह थी कि इसके द्वारा जापान में पार्लियामेंट की स्थापना की गई। जापानी डायट के दो सदन थे उच्च सदन (लार्ड सभा) तथा निम्न सदन (लोक सभा)- उच्च सदन में राजघराने के व्यक्ति, प्रिंस, माक्विंस, काउन्ट, वाइकाउन्ट तथा बैरन वर्ग के प्रतिनिधि कुलीन, सम्राट द्वारा मनोनीत सदस्य एवं सबसे अधिक राजकीय कर देने वाले लोग होते थे। निम्न सदन में जनता द्वारा निर्वाचित सदस्य होते थे, परन्तु सन् 1889 ई० में मताधिकार बहुत कम लोगों को दिया गया था। मताधिकार के लिए सम्पत्ति की शर्त रखी गई थी। किन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, जापान में मताधिकार भी विस्तृत होता गया। पार्लियामेंट के अधि वेशन को वर्ष में कम से कम एक बार बुलाना आवश्यक था। नये करों को लगाने तथा नये बजट के लिए पार्लियामेंट की स्वीकृति आवश्यक थी। सम्राट् को यह अधिकार था कि वह पार्लियामेंट में स्वीकृत किसी भी कानून के विरूद्ध अपने निषेधाधिकार का प्रयोग कर सके। पार्लियामेंट के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछ सकते थे और उनके विरूद्ध अविश्वास का प्रस्ताव रख सकते थे किन्तु मंत्रियों को बर्खास्त करने का अधिकार केवल सम्राट् को था । पार्लियामेंट के सदस्यों को भाषण देने की पूर्ण स्वतंत्रता थी।
नये शासन विधान में नागरिकों के अधिकारों का विशद् रूप से प्रतिपादन किया गया था। कानून की दृष्टि से जापानी एक समान थे। राजकीय पद, नौकरी, भाषण, लेखन सभाएँ करने, संगठन बनाने, अपने विचारों को प्रकट करने तथा अपने विश्वास के अनुसार किसी भी धर्म को मानने की सबको स्वतंत्रता दी गई थी। राजकर्मचारियों को स्वेच्छापूर्वक किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार न था। अभियुक्तों पर न्यायालय में मुकदमा चलाने तथा न्यायालय से दण्ड पा जाने के बाद जेल में रखा जा सकता था अन्यथा नहीं। अधिकारों को कानून द्वारा सीमित भी किया जा सकता था।
इटों को संविधान निर्माण करते समय यह चिन्ता थी कि जापान के नेताओं के हाथों में शक्ति केन्द्रीभूत रहे। इसके लिए वरिष्ठ राजनीतिज्ञों के एक संगठन का विधान में बाद में आयोजन किया गया। सामन्ती युग की याद दिलाने वाले जनेरो में वे शक्तिशाली नेता थे जिन्होंने संक्रमण काल - में राष्ट्र का नेतृत्व किया था। यह संगठन मंत्रि-परिषद् के सदस्यों की नियुक्ति तथा युद्ध और शांति सरीखे बड़े-बड़े प्रश्नों पर सम्राट को सलाह देता था।
इस नये विधान का वित्त सम्बन्धी छठा अध्याय सबसे अधिक रूचिकर एवं उत्तरदायी शासन की जड़ों पर सबसे अधिक प्रहार करने वाला था । यद्यपि बजट या वार्षिक आय-व्यय के प्रभावकारी होने के लिए निम्न सदन की सहमति आवश्यक थी किन्तु इस सदन को वास्तविक वित्तीय अधिकार या नियंत्रण बिल्कुल नहीं दिया गया था। सदन के इस अधिकार का अपहरण यही सावधानी से किया गया था। देश की कर प्रणाली विधान लागू होने के पूर्व ही बन चुकी थी, इसलिए में यह व्यवस्था की गई कि चालू करों में संशोधन करने या नये करों के लगाने के लिए पार्लियामेंट को स्वीकृति आवश्यक होगी। प्रशासकीय शुल्कों, मुआवजों तथा क्षतिपूर्तियों के रूप में कुछ ऐसी राजतंत्र आय की व्यवस्था की गई, जो पार्लियामेंट के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखी गई। व्यय के सम्बन्ध में कहा गया कि 'विधान द्वारा प्रदत्त सम्राट् के अधिकारों पर आधारित व्ययों (जैसे कि वेतन) या कानूनों को लागू करने के परिणामस्वरूप होने वाले खर्च या शासन के वैध उत्तरदायित्वों पर होने वाले व्ययों को पार्लियामेंट प्रशासन की सहमति के बिना न तो कम कर सकती है और न ही अस्वीकार। आकस्मिक व्ययों के लिए सुरक्षित निधि की व्यवस्था तथा विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रशासन पार्लियामेंट से धन की माँग कर सकता था। यह भी व्यवस्था की गई थी कि यदि पार्लियामेंट नये बजट को स्वीकार करने से मना कर दे, तो पिछले बजट के अनुसार वित्तीय व्यवस्था की जा सकेगी। इस प्रकार पार्लियामेंट का एकमात्र वित्तीय अधिकार यह रह गया था कि वह खर्च का बढ़ना रोक सकती थी।
सन् 1889 ई० के शासन-विधान द्वारा जापान राजनीतिक तथा शासन की दृष्टि से पाश्चात्य देशों के निकट पहुँच गया था। यद्यपि फ्रांस, अमेरिका तथा ब्रिटेन लोकतंत्रवाद की दृष्टि से जापान से काफी आगे थे किन्तु जर्मनी, आस्ट्रिया तथा स्पेन सरीखे कुछ ऐसे भी राष्ट्र थे जो जापान से अधिक उन्नत नहीं थे। रूस, टर्की आदि की सरकारें जापान की अपेक्षाकृत निश्चित रूप से अधिक निरंकुश व स्वेच्छाचारी थी। यूरोप के राष्ट्रों को सामन्त पद्धति एवं एकतंत्र शासन का अन्त कर लोकतंत्र तक पहुँचने में सदियों लगी थी, पर जापान ने चौथाई शताब्दी से कम में ही सामन्त पद्धति तथा निरंकुश शासन का अन्त कर एक ऐसे संविधान की रचना की जो 19वीं शती की प्रवृत्तियों के अनुकूल था। वैधानिक आन्दोलन के इस वर्णन से स्पष्ट है कि जापान में प्रजातंत्र का जन्म ‘अनायास विस्फोट या क्रांति से नहीं वरन् विकास की प्रक्रिया द्वारा हुआ है।
यद्यपि संविधान की घोषणा सन् 1889 ई० में हुई किन्तु विधान पूर्ण रूप से सन् 1890 ई० में लागू हुआ जबकि पहली डायट का संगठन और अधिवेशन आरम्भ हुआ। चुनावों के होते ही भविष्य के मतभेदों की रूपरेखा स्पष्ट हो गई। निम्न सदन में राजनीतिक दलों का तथा मंत्रि-परिषद् पर कुल के नेताओं का आधिपत्य स्थापित हो गया। डायट के पास इतने अधिकार तो थे ही कि वह किसी भी कार्य में बाधा डाल सके किन्तु नियंत्रण के अधिकार उसके पास न थे। शासन ने इन दो अंगों डायट व मंत्रि-परिषद् के बीच मतभेदों को दूर करने की व्यवस्था संविधान में न थी। सम्राट् के पास अपील और उसके निर्णयात्मक घोषणा द्वारा ही इस संघर्ष का निराकरण हो सकता था। मंत्रि-परिषद् में मनोनीत कुल नेताओं के सम्मुख शासन चलाने के लिए एक ही रास्ता था कि या तो वे डायट पर नियंत्रण करें या डायट द्वारा उपस्थित गतिरोध की चिन्ता न करते हुए शासन चलाते रहें। समस्या का असली समाधान था मंत्रि-परिषद् का डायट के प्रति उत्तरदायी होना, किन्तु इस समस्या पर किसी ने विचार नहीं किया था। अधिकारी तंत्र- जेनरो तथा मंत्रि-परिषद् ने इस समस्या के समाधान के लिए प्रतिनिधि सभा को बार-बार भंग कराकर नए चुनाव कराये ताकि उनके समर्थक प्रतिनिधि सभा (निम्न सदन) में बहुसंख्या में आ सके। नये संविधान के लागू होने के चार वर्षों बाद तक मंत्रिपरिषद को विरोधी प्रतिनिधि सभा का सामना करना पड़ा। तीन बार मंत्रिपरिषद का पुनर्गठन हुआ। कई बार डायट भी भंग की गई।
Major Provisions of the Meiji Constitution |
End of Articles..... Thanks....
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