Showing posts with label International. Show all posts
Showing posts with label International. Show all posts

Friday, 13 October 2023

Major Straits of Asia

एशिया की प्रमुख जलसंधियाँ

 
नाम अलग करती है जोड़ती है
बास्पोरस जलसंधि एशिया एवं यूरोप काला सागर एवं मरमरा (एजियन) सागर
डारडनेल्स जलसंधि एशिया एवं यूरोप मरमरा सागर एवं भूमध्य सागर
पाक जलसंधि भारत एवं श्रीलंका मन्नार एवं बंगाल की खाड़ी
बाव-एल मंडेव जलसंधि यमन-जिबूती लाल सागर एवं अरब सागर
कारीमाटा जलसंधि इण्डोनेशिया दक्षिणी चीन सागर एवं जावा सागर
वाला बैंक जलसंधि पलावान-बोर्नियो सुलू सागर एवं सेलेबीज सागर
टोकरा जलसंधि जापान पूर्वी चीन सागर एवं प्रशान्त महासागर
नेमुरो जलसंधि जापान प्रशान्त महासागर
सुगारु जलसंधि जापान जापान सागर एवं प्रशांत महासागर
सुशीमा जलसंधि जापान जापान सागर एवं पूर्वी चीन सागर
फोरमोसा जलसंधि ताईवान एवं चीन पूर्वी चीन सागर एवं दक्षिणी चीन सागर
कोरिया जलसंधि दक्षिण कोरिया एवं क्यूशू (जापान) पीला सागर एवं जापान सागर
तत्तर जलसंधि पूर्वी रूस एवं सखालिन ओखोट्स सागर एवं जापान सागर
लापैरोज जलसंधि सखालिन द्वीप एवं हैकेडो द्वीप ओखोट्स सागर एवं जापान सागर
बेरिंग जलसंधि एशिया (रूस) एवं उत्तरी अमेरिका (अलास्का) पूर्वी साईबेरियन सागर एवं बेरिंग सागर
लूजोन जलसंधि ताईवान एवं लूजोन (फिलीपींस) दक्षिणी चीन सागर एवं प्रशांत महासागर
मकस्सार जलसंधि बोर्नियो (केलिमंटन) एवं सेलिबीज द्वीप सेलेबीज सागर एवं जावा सागर
सुण्डा जलसंधि जावा एवं सुमात्रा जावा सागर एवं हिंद महासागर
मलक्का जलसंधि मलय प्रायद्वीप एवं सुमात्रा जावा सागर (दक्षिणी चीन सागर) एवं बंगाल की खाड़ी (हिन्द महासागर)
जाहौर जलसंधि सिंगापुर एवं मलेशिया दक्षिणी चीन सागर एवं मलक्का जल संधि
होरमुज जलसंधि संयुक्त अरब अमीरात एवं ईरान फारस की खाड़ी एवं ओमान की खाड़ी

Wednesday, 14 June 2023

Countries and National Symbols

क्र० देश राष्ट्रीय चिह्न
1. भारत अशोक चक्र
2. जर्मनी ईगल
3. स्पेन ईगल
4. पोलैण्ड ईगल
5. बांग्लादेश कंबल (वाटर लिली)
6. चिली कंडोर एवं ह्युमुल
7. इजराइल कैंडलाब्रुम
8. संयुक्त राज्य अमेरिका गोल्डेन रॉड
9. तुर्की चाँद-तार
10. ईरान गुलाब का फूल
11. पाकिस्तान चमेली का फूल
12. जिम्बाब्वे जिम्बाब्वे पक्षी
13. रूस डबल हेडेड ईगल
14. डेनमार्क बीच
15. कनाडा मैपल पत्ती
16. ऑस्ट्रेलिया वैटल
17. नार्वे शेर
18. फ्रांस लिली
19. इटली सफेद लिली
20. यूनाइटेड किंगडम सफेद लिली


Countries and National Symbols
Countries and National Symbols


Friday, 12 May 2023

Various Units of Measurement and Weight

राशि मात्रक(S.I) प्रतीक
लम्बाई मीटर m
द्रव्यमान किलोग्राम kg
समय सेकेंड s
कार्य तथा ऊर्जा जूल J
विधुत धारा एम्पियर A
ऊष्मागतिक ताप केल्विन K
ज्योति तीव्रता कैण्डेला cd
कोण रेडियन rad
ठोस कोण स्टेरेडियन sr
बल न्यूटन N
क्षेत्रफल वर्गमीटर

m2

आयतन घनमीटर m3
चाल मीटर प्रति सेकेण्ड ms-1
कोणीय वेग रेडियन प्रति सेकेण्ड rad  s-1
आवृत्ति हर्ट्ज Hz
जड़त्व आघूर्ण किलोग्राम वर्गमीटर kgm2
संवेग किलोग्राम मीटर प्रति सेकेण्ड kg  ms-1
आवेग न्यूटन - सेकण्ड Ns
कोणीय संवेग किलोग्राम वर्गमीटर प्रति सेकेण्ड kgm2s-1
दाब पास्कल Pa
शक्ति वाट W
पृष्ठ तनाव न्यूटन प्रति मीटर Nm-1
श्यानता न्यूटन सेकेण्ड प्रति वर्ग मीटर Nsm-2
ऊष्मा चालकता वाट प्रति मीटर प्रति डिग्री सेण्टीग्रेड Wm-1 oC-1
विशिष्ट ऊष्मा जूल प्रति किलोग्राम प्रति केल्विन J   kg-1K-1
विधुत आवेश कूलॉम C
विभवान्तर वोल्ट V
विधुत प्रतिरोध ओम Ω
विधुत धारिता फैराड F
प्रेरक हेनरी H
चुम्बकीय-फ्लक्स बेवर Wb
ज्योति फ्लक्स ल्यूमेन lm
प्रदीप्ति घनत्व लक्स lx
तरंगदैर्ध्य ऐंग्स्ट्रम Å

Various Units of Measurement and Weight
Various Units of Measurement and Weight


Friday, 18 November 2022

Treaty of Nanking

 नानकिंग की संधि 


29 अगस्त, 1842 को चीन और ब्रिटेन में समझौता हो गया। यह समझौता नानकिंग को सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है। इस सन्धि की प्रमुख शर्तें निम्नलिखित थीं- 


(क) ब्रिटिश व्यापारियों के लिए चीन के पाँच वन्दरगाह कैंटन (Canton ), अमॉय (Amoy) फूलों (Phoolon), निंगपो (Ningpo) एवं संघाई (Shanghai) खोल दिये गये जहाँ ब्रिटिश सरकार को वाणिज्यदूत नियुक्त करने का अधिकार मिल गया।


(ख) हांगकांग का द्वीप सदा के लिए अंग्रेजों को मिल गया। 


(ग) विदेशी व्यापार का नियंत्रण करने वाले चीनी व्यापारियों के संगठन को हांग को भंग कर दिया गया ताकि ब्रिटिश व्यापारियों को चीनी व्यापारियों से सीधे क्रय-विक्रय का अधिकार दे दिया गया। (घ) चीन में आयात-निर्यात के सीमा शुल्क की दरें निश्चित कर दी गई। पाँच प्रतिशत (मूल्यानुसार) तट कर निर्धारित किया गया।


(ड़) चीन ने दो करोड़ दस लाख डालर देना मान लिया। इसमें साठ लाख डालर तो कँटन में अफीम जब्त करने के बदले क्षतिपूर्ति, तीस जाख डालर हाँग व्यापारियों के पास बकाया तथा एक करोड़ बीस लाख डालर युद्ध क्षतिपूर्ति थी।


(च) यह प्रबंध मान लिया गया कि मुख्य ब्रिटिश प्रतिनिधि और चीनी अधिकारियों के बीच पत्र-व्यवहार को 'प्रार्थना-पत्र' न कहकर 'सन्देश पत्र' कहा जाएगा।


(छ) यह मान लिया गया कि अंग्रेजों पर मुकदमें उन्हीं के कानून के अनुसार और उन्हीं की अदालत में चलेंगे।


(ज) यह भी निश्चय हुआ कि जो सुविधाएँ अन्य विदेशियों को दी जाएगी, वे सुविधाएँ इन्हें भी दी जाएगी।


नानकिंग की सौंध चीन के लिए अत्यंत अपमानजनक साबित हुई। इसने मंचू सरकार की कमजोरी स्पष्ट कर दी। यह भी स्पष्ट हो गया कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विरोध आसान नहीं है। जिस अफीम व्यापार को बंद करने के लिए युद्ध किया गया था, वह ज्यों का त्यों बना रहा। प्रसंगवश, मंच सरकार ने हारकर ब्रिटेन से नानकिंग की संधि को इस संधि में 13 धाराएँ थीं। यह संधि चीन द्वारा विदेशी हमलावरों के साथ संपन्न की गई पहली असमान संधि थी। इस सौंध में मुख्यतया यह निर्धारित किया गया कि क्वांगचो, फूचओ, श्यामन, निंगपो और शंधाई-इन पाँचों शहरों को ब्रिटेन के व्यापार के लिए खोल दिया जाएगा; हांगकांग ब्रिटेन को दे दिया जाएगा और चीन ब्रिटेन को 2 करोड़ 10 लाख चाँदी के डालर (सिक्के) हजाने के तौर पर देगा। इसमें यह व्यवस्था भी थी कि ब्रिटिश माल के प्रवेश पर लगनेवाला सीमा शुल्क दोनों देशों की बातचीत के जरिए निर्धारित किया जाएगा।


1843 ई० में ब्रिटेन ने मंचू सरकार को मजबूर कर नानकिंग सौंध के पूरक दस्तावेजों चीन के पाँच शहरों में ब्रिटेन के व्यापार से संबद्ध सामान्य नियमावली' और 'चीन ब्रिटेन हमन संधि' पर भी हस्ताक्षर करवा लिए। इन दोनों दस्तावेजों में यह व्यवस्था की गई कि ब्रिटेन का जो भी माल चीन में आयात किया जाएगा या चीन से बाहर भेजा जाएगा उसपर 5 प्रतिशत से ज्यादा सीमा शुल्क नहीं लगेगा, तथा संधि में निर्धारित पाँच शहरों में अंगरेजों को अपनी बस्तियाँ बसाने के लिए पट्टे पर जमीन लेने की इजाजत होगी। (इस व्यवस्था से चीन में विदेशियों के लिए पट्टे पर भूमि लेने' और उसपर विदेशी बस्तियाँ बसाने का रास्ता खुल गया। इसके अलावा ब्रिटेन ने चीन की धरती पर विदेशी कानून लागू करने और 'विशेष सुविधाप्राप्त राष्ट्र का वर्ताव' पाने का अधिकार भी प्राप्त कर लिया।


1844 ई० में अमेरिका और फ्रांस ने मंचू सरकार को क्रमशः 'चीन-अमेरिका वांगश्या साँध' और 'चीन-फ्रांस व्हांगफू संधि पर हस्ताक्षर करने को बाध्य किया। इन दो संधियों के जरिए अमेरिका और फ्रांस ने चीन से प्रादेशिक भूमि व हर्जाने को छोड़कर बाकी सभी ऐसे विशेषाधिकार प्राप्त कर लिए जिनकी चर्चा नानकिंग सोध एवं उससे संबद्ध दस्तावेजों में की गई थी। इसके अलावा, अमेरिकियों ने अपने देश के व्यापार के सुरक्षा के लिए चीनी व्यापारिक बंदरगाहों में युद्धपोत भेजने और पाँच व्यापारिक बंदरगाह शहरों में चर्च एवं अस्पताल बनाने के विशेषाधिकार भी प्राप्त कर लिए। इसी दौरान फ्रांसीसी भी मंचू सरकार को इस बात के लिए मजबूर करने में सफल हो गए कि वह व्यापारिक बंदरगाहों में रोमन कैथोलिकों की गतिविधियों पर लगा प्रतिबंध उठा लें, ताकि वे अपने इच्छानुसार धर्म प्रचार कर सकें। जल्दी ही प्रोटेस्टेंट मिशनरियों ने भी यह अधिकार प्राप्त कर लिया।


नानकिंग की संधि और दूसरी असमान संधियों पर हस्ताक्षर होने के फलस्वरूप चीन एक प्रभुसत्ता संपन्न देश नहीं रहा। बड़ी मात्रा में विदेशी माल आने से चीन की सामंती अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे किन्तु निश्चित रूप से विघटित होने लगी। तब से चीन एक अर्द्ध-औपनिवेशिक और अर्द्ध-सामंती समाज में बदलता गया। चीनी राष्ट्रपति और विदेशी पूँजीपतियों के बीच का अंतर्विरोध धीरे-धीरे विकसित होकर प्रधान अंतर्विरोध बन गया। इसी समय से चीन के क्रांतिकारी आंदोलन का लक्ष्य भी दोहरा हो गया अर्थात घरेलू सामंती शासकों के विरूद्ध संघर्ष करने के साथ-साथ विदेशी पूँजीवादी आक्रमणकारियों का विरोध करना ।


अफीम युद्ध के बाद चीनी जनता विदेशी पूँजीपतियों और घरेलू सामंतवादी तत्वों के दोहरे उत्पीड़न का शिकार हो गई तथा उसके कष्ट बढ़ते गये। 1841 ई० से 1850 ई० के दौरान देश में 100 से अधिक किसान-विद्रोह हुए। 1851 ई० में अनेक छोटी-छोटी व्रिदोहरूपी धाराओं ने आपस में मिलकर एक प्रचंड प्रवाह अर्थात ताईपिंग विद्रोह का रूप ले लिया।


Treaty of Nanking
Treaty of Nanking

End of Articles.... Thanks...

Sunday, 9 October 2022

First Opium War

 प्रथम अफीम युद्ध के कारणों एवं परिणामों 


कारण - 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में चीन विश्व में एक अति धनाढ्य देश जाना जाता था। दुनिया से अलग-थलग वह एक सामंती समाजवाला देश था, जिसकी उत्पादन व्यवस्था में संयुक्त रूप से लघु-किसान कृषि और घरेलू दस्तकारी उद्योग की प्रधानता थी। काफी संख्या में किसान समुदाय के पुरूष खेतीबारी करते थे और स्त्रियाँ कताई बुनाई करती थीं। वे अपनी जरूरत का अनाज, कपड़ा और अन्य चीजें स्वयं ही पैदा कर लेते थे। प्रारंभ में चीन बड़े पैमाने पर सामान का निर्यात ही करता था और आयात छोटे पैमाने पर।


आर्थिक लाभ के लालच में यूरोप के कई देश चीन को ललचाई दृष्टि से देखते थे। 1840 ई० के आसपास ब्रिटेन संसार का सबसे विकसित पूँजीवादी देश था। भारत में अपना उपनिवेशवाद सुदृढ़ करने के फौरन बाद उसने चीन को अपने आक्रमण का निशाना बनाया। ब्रिटेन में निर्मित सूती कपड़ा तथा ऊनी चीजें चीन के बाजार में आसानी से नहीं बिक पाती थीं। इसलिए ब्रिटिश पूँजीपतियों को चीन से चाय, रेशम और दूसरी उत्पादित वस्तुएँ खरीदने के लिए बड़ी मात्रा में चाँदी अपने देश से यहाँ लानी पड़ती थी।


चाँदी के अभाव में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी चीनी माल की कीमत चुकाने के लिए कोई अन्य उपाय सोचने लगी। उसने अफीम का व्यापार करने का फैसला किया। 1781 ई० में कंपनी ने पूरी तैयारी के साथ पहली बार भारतीय अफीम को बड़ी मात्रा में चीन भेजा। इससे पहले मादक द्रव्य के बारे में चीन के लोग बिल्कुल नहीं जानते थे। इसके बाद यह व्यापार दिन दूना रात चौगुना बढ़ता गया। शीघ्र ही एक ऐसी हालत पैदा हो गई जिसमें चीन से निर्यात होनेवाली चाय, रेशम और अन्य चीजों का मूल्य चीन में आयात की जानेवाली अफीम का मूल्य चुकाने के लिए काफी नहीं रह गया तथा चाँदी देश के अंदर आने के बदले देश के बाहर जाने लगी।


1800 ई० ने चीन के सम्राट ने अफीम के शारीरिक और आर्थिक दुष्प्रभाव से अत्यंत चिंतित होकर चीन में इसपर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन, तबतक बहुत से लोगों को इसकी आदत लग चुकी थी। अफीम के व्यापार के मुनाफे से बहुत से व्यापारी और अफसर भ्रष्ट हो चुके थे। इसलिए तस्करी और घूसखोरी ने इस प्रतिबंध को लगभग निष्प्रभावी बना डाला।


अफीम का वार्षिक व्यापार, जो 1800 ई० में 2000 पेटियों के बराबर था, 1838 ई० में बढ़कर 40,000 पेटियों के बराबर हो गया। इस व्यापार में अमेरिकी जलयान काफी पहले ही शामिल हो चुके थे। वे भारतीय अफीम की कमी पूरी करने के लिए तुर्की की अफीम भी लाते थे। इस प्रकार, उन्होंने भी इस व्यापार में बेशुमार मुनाफा कमाया, जो बाद में अमेरिका के औद्योगिक विकास का आधार बना।


बेहद तेज गति से चीन की चाँदी बाहर जाने लगी। 1832-35 में दो करोड़ औंस चाँदी चीन से बाहर चली गई। परिणामस्वरूप, देश में उसका भाव बेहद चढ़ता गया। इसका बोझ किसानों पर पड़ा क्योंकि इससे अनाज के दाम गिरते गए। लेकिन, जमींदारों और कर वसूल करनेवालों ने पहले से अधिक अनाज वसूल करना शुरू कर दिया। इसलिए चाँदी के रूप में उनकी आमदनी पहले जैसी ही बनी रही। इस तरह चीन के सामंती समाज में तनाव पहले से ज्यादा बढ़ता गया। यह सामाजिक तनाव पहले हो इतना बढ़ चुका था कि अठारहवीं शताब्दी के मध्य में किसान विद्रोहों की एक नई लहर उठने लगी। 1810 ई० के बाद मंचू राजवंश के खिलाफ पहले से ज्यादा संख्या में और व्यापक पैमाने पर विद्रोह हुए। 1813 ई० में तो विद्रोहियों का एक दल पेकिंग में सम्राट के राजमहल में भी घुस गया।


अपने को बचाने के उद्देश्य से मंचू राजवंश के पेकिंग स्थित शासकों को मजबूर होकर कुछ कारगर कदम उठाने पड़े। अफीम के व्यापार की रोकथाम के लिए पहले से ज्यादा कड़े फरमान जारी करने के बाद, उन्होंने लिन चेश्वी को, जो अफीम के व्यापार पर प्रतिबंध का पक्का समर्थक था, कैण्टन (क्वांगचो) का विशेष कमिश्नर नियुक्त कर दिया। लिन चेश्वी मार्च, 1839 में कैण्टन पहुँचा। जनता के समर्थन में उसने नगर के उस भाग की नाकेबंदी कर दी जिसमें ब्रिटिश और अमेरिकी व्यापारियों को अपने व्यापारिक संस्थान कायम करने की अनुमति थी। उसने वहाँ के तमाम अफीम व्यापारियों को आदेश दिया कि वे अफीम का अपना सारा स्टॉक एक निश्चित अवधि के अंदर उसके हवाले कर दें। इस आदेश के बाद चीन स्थित ब्रिटिश व्यापार अधीक्षक चार्ल्स इलियट को 20,000 पेटियों से ज्यादा अफीम, जिसका वजन 11 लाख 50 हजार किलोग्राम था, चीनी अधिकारियों के हवाले करना पड़ा। इनमें लगभग 1,500 पेटियाँ अमेरिकी व्यापारियों की थीं। 3 जून, 1839 को लिन चेश्वी ने एक अन्य आदेश जारी किया कि जब्त की हुई तमाम अफीम हूमन कं समुद्रतट पर खुलेआम जला दी जाए। इस तरह तमाम अफीम जला देने के बाद लिन चेश्वी ने चीन और ब्रिटेन के बीच का सामान्य व्यापार पुनः शुरू करने का आदेश दिया। इसके साथ यह प्रतिबंध भी लगा दिया कि आगे से ब्रिटिश व्यापारियों को किसी भी हालत में थोड़ी-सी भी अफीम चीन में लाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। परिणामस्वरूप, पहला अफीम युद्ध छिड़ गया।


परिणाम - ब्रिटेन चीन में अपना अवैध अफीम-व्यापार जारी रखने पर तुला हुआ था, इसलिए 1840 ई० में उसने चीन के विरूद्ध पहला अफीम युद्ध छेड़ दिया। चीनी जनता हमलावरों के विरूद्ध सशस्त्र संघर्ष में भाग लेने के लिए उठ खड़ी हुई। किंतु, भ्रष्ट छिंग सरकार ने विदेशी दुश्मन के सामने घुटने टेक देना ही बेहतर समझा। उसे डर था कि यदि अँगरेजों के विरूद्ध लड़ाई जारी रही तो देश की जनता उसमें भाग लेकर पहले से अधिक शक्तिशाली हो जाएगी और तब स्वयं छिंग सरकार का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।


युद्ध के परिणामस्वरूप चीन पर प्रथम बार अपमानजनक 'असमान संधियाँ' थोप दी गई। इन संधियों ने चीन को राष्ट्रीय विनाश के कगार पर ला खड़ा कर दिया। छिंग शासकों ने 1843 ई० में ब्रिटेन के साथ नानकिंग की साँध पर हस्ताक्षार कर दिए। 1843 ई० की संधि के अनुसार- (a) लिन चेश्वी द्वारा जब्त की गई और जलाई गई अफीम की क्षतिपूर्ति करनी होगी। यह इस विषैले पदार्थ के सभी भावी व्यापारियों के लिए सुरक्षा का आश्वासन था।


(b) हांगकांग ब्रिटेन को दे देना होगा। बाद में चलकर हांगकांग का प्रयोग ब्रिटेन ने चीन में अपनी सैनिक, राजनीतिक और आर्थिक के अड़े के रूप में किया। 


(c) पाँच मुख्य बंदरगाहों को ब्रिटिश व्यापार एवं ब्रिटिश बस्तियों के लिए खोलना होगा। इससे शीघ्र ही ब्रिटेन के प्रभुत्ववाले प्रादेशिक क्षेत्र कायम हो गए। ये प्रादेशिक क्षेत्र चीन के बंदरगाहों की तथाकथित विदेशी बस्तियों के प्रारंभिक रूप थे।


(d) ब्रिटिश नागरिकों पर चीनी कानून लागू नहीं होंगे। इससे अन्य देशों को भी चीन की प्रादेशिक भूमि पर विदेशी कानून लागू करने की अनुमति मिल गई। 


(e) चीन को ब्रिटेन का कृपापात्र बनकर रहना होगा। इसकी माँग अन्य शक्तियों द्वारा भी की गई और इस प्रकार सभी विदेशियों को वे 'विशेषाधिकार' प्राप्त हो गए जिन्हें ब्रिटिश आक्रमणकारियों ने चीन से ऐंठ लिया था। 


(f) चीन विदेशी माल पर 5 प्रतिशत से ज्यादा आयात कर न लगाने का वचन देगा। यह चीन के घरेलू उद्योग के विकास के लिए घातक साबित हुआ। 


चीन को निर्बल देख अन्य विदेशी शक्तियों के दूत भी अपने नौपोतों पर सवार होकर ऐसी ही सौंधयाँ थोपने आ पहुँचे। पहला दूत संयुक्त राज्य अमेरिका से आया जिसका नाम था कालेव कुशिंग। उसने कमजोर पैकिंग दरबार को लापरवाह ढंग से सूचित किया कि यदि उसने समझौता वार्ता से इनकार किया तो इसे 'राष्ट्रीय अपमान और युद्ध का न्यायोचित कारण' समझा जाएगा। 1844 ई० में चीनी सरकार की वांगश्या संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए अमेरिकी दूत कुशिंग ने बाध्य कर दिया। इस संधि के अनुसार चीन के सामंती शासकों ने जितना विशेषाधि कार ब्रिटेन को दिया था उससे अधिक विशेषाधिकार अमेरिका को प्राप्त हुआ। कुशिंग की यह संधि व्यवहार में तस्करों के लिए वरदान सिद्ध हुई।


अमेरिका के साथ हुई सौंध को देख ब्रिटेन ने चीन से और कुछ प्राप्त करना चाहा। 1847 ई० में उसने चीन पर दबाव डाला कि ब्रिटेन द्वारा शासित भारत और पश्चिमी तिब्बत के बीच की सीमा को औपचारिक रूप से निर्धारित कर दिया जाए, ताकि अपने इच्छानुसार वह जो सीमा रेखा चाहे चीन पर थोप सके। तिब्बत में घुसपैठ करने और उसे चीन से अलग करने का हर विदेशी प्रयास समूचे चीन पर साम्राज्यवादियों के आक्रमण की प्रक्रिया और विभाजन के प्रयास का ही एक अभिन्न अंग था।


अफीम युद्ध के संबंध में एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ईसाई मिशनरियों ने चीन की स्थिति और चीनी भाषा की जानकारी का फायदा उठाकर चीन को अपमानित करने का प्रयास किया; जबकि चीन में वे केवल ईसाई धर्म का प्रचार करने आए थे।


डॉ० गुत्जलाफ नामक एक पादरी ने ब्रिटिश अफीम कंपनी को बिचौलिए के रूप में काम किया था तथा पुरस्कार के रूप में अपनी धार्मिक पत्रिका के लिए अनुदान प्राप्त किया था। वह बाद में चलकर ब्रिटिश फौज का दुभाषिया और गुप्तचर संगठनकर्ता बन गया। ब्रिटेन के लिए गुप्तचरी करने के लिए उसने चीनी जासूस भर्ती किए थे। ब्रिटिश सेना ने जब तिंगहाउ नगर आदि पर अधिकार कर लिया तब निंगपो नामक बंदरगाह का प्रशासक गुत्जलाफ को बनाया गया। बाद में वह हांगकांग की ब्रिटिश सरकार में 'चीनी मामलों का सचिव' बन गया।


अमेरिका के साथ हुई वांगश्या संधि के दौरान भी अमेरिको ईसाई मिशनरी विलियम्स, ब्रिजमैन और पार्कर ने ही अमेरिकी दूत कुशिंग को सलाह दी थी कि वह एक ऐसा रूख अपनाए जिससे चीन 'झुक जाए या टूट जाए।


युद्ध के दौरान ब्रिटेन ने सभी को यह आश्वासन दिया कि यह लड़ाई अफीम के लिए नहीं बल्कि चीन को यह सिखाने के लिए की जा रही थी कि वह प्रगति और स्वतंत्र व्यापार का विरोध न करे। 1850 ई० में भारत की ब्रिटिश सरकार को अफीम के व्यापार से होनेवाला मुनाफा उसके कुल राजस्व के 20 प्रतिशत तक पहुँच गया, जबकि चीन इस व्यापार के कारण शक्तिहीन एवं निर्धन बनता गया।


चीन में अफीम का 'कानूनी' आयात 1917 ई० तक जारी रहा। चीन की भूमि पर विदेशियों को प्राप्त प्रशासनिक रियायतों को और अधिक विस्तार व आक्रमण करने के लिए स्प्रिंगबोर्ड के रूप में इस्तेमाल किया गया। देश का घरेलू बाजार विदेशी माल से पाट दिया गया। चीन एक अर्द्ध औपनिवेशिक एवं अर्द्ध-सामंती देश बन गया।


विदेशी हमलावरों को हजनि को बहुत बड़ी रकम भुगतान करने के लिए देश की जनता से छिंग सरकार ने हर तरह से धन ऐंठना शुरू किया। जनता कराह उठी और चीन के इतिहास में सबसे बड़े क्रांतिकारी किसान आंदोलन की तस्वीर बनी।


First Opium War
First Opium War

End of Articles.... Thanks...


Contact Form

Name

Email *

Message *