ताईपिंग विद्रोह के कारण और प्रभाव
चीन में मंचू प्रशासन एवं विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप अथवा उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद के विरुद्ध होने वाले प्रमुख प्रतिक्रियाओं में ताईपिंग विद्रोह, सुधार आंदोलन, बॉक्सर विद्रोह एवं चीन की क्रांति (1911 ई0) अत्यंत महत्वपूर्ण है।
ताईपिंग विद्रोह के कारण
इस विद्रोह के निम्नलिखित कारण थे - 1. चीन में विद्रोह की परंपरा - चीन में प्रशासनिक अव्यवस्था एवं भ्रष्टाचार तथा असफलता के विरोध में विद्रोह की परंपरा अत्यंत प्राचीन काल से थी। चीनी जनता कन्फ्यूशियस के इस सिद्धांत पर विश्वास करती थी कि "जब कोई राजवंश शासन की शक्ति को खो देता है तो यह समझ लेना चाहिए कि ईश्वर ने अपने अधिकारों को वापस ले लिया है।" चीनी जनता सम्राट को अपना संप्रभु मानती थी, परंतु यदि सम्राट निर्बल होता तो उसे सम्राट के पद पर ही बने रहने का कोई अधिकार नहीं था। चीन में इस प्रकार के विद्रोह हो चुके थे। 1796 से 1803 के 'श्वेत कमल समाज' द्वारा पश्चिमी प्रांतो में विद्रोह इसका स्पष्ट उदाहरण है। इस प्रकार विद्रोह की परंपरा से चीनी परिचित थे। इसी पृष्ठभूमि में चीनियों ने मंचू शासन के विरोध में विद्रोह किया था।
2. परवर्ती मंचू शासकों की दुर्बलता - चीन में मंचू वंश की स्थापना के साथ ही एक वर्ग में यह प्रचार करना प्रारंभ कर दिया था कि "चीन के स्वर्गिक साम्राज्य को मंचू वंश के शासन से मुक्ति दिलाना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि मंचू शासन चीन का हन्ता है।" इस प्रकार मिंग शासन पुनर्स्थापना के पक्षधरों ने भी कहना प्रारंभ कर दिया था कि "मंचू शासन को मार भगाओ तथा मिंग वंश की पुनः स्थापना करो।" प्रारंभिक मंचू शासक योग्य थे, अतः उन्होंने स्थिति को नियंत्रित रखा, परंतु परवर्ती मंचू शासक अयोग्य एवं शक्तिहीन सिद्ध हुए। ताओ कुआंग जिसने 1820 से 1850 तक शासन किया, उसके शासनकाल में चीन प्रथम अफीम युद्ध में पराजित हुआ। वास्तव में, पश्चिमी साम्राज्य का साम्राज्यवादी पंजा जिस प्रकार चीन की लूट-खसोट के लिए उतावला एवं तत्पर था उससे जूझने की शक्ति 1839-42 ई0 तक प्रथम आंग्ल-चीनी युद्ध में पराजित चीन में नहीं रह गई थी। चीन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अव्यवस्था से जिस समय ताइपिंग विद्रोह हुआ था, उस समय चीन में सिएन फेंग नामक अत्यंत दुर्बल शासक था।
3. आंतरिक अव्यवस्था - सिएन फेंग के निर्बल शासन काल में भ्रष्टाचार की जिस गति से वृद्धि हो रही थी, उससे प्रशासनिक एवं सैनिक अधिकारियों में विलासिता की भावना भर गई। अतः राजकीय अधिकारी अपने नैतिक कर्तव्यो से गिर गए। अतः देश में अव्यवस्था एवं अशांति फैल गई। मंचू शासक इस अव्यवस्था से उत्पन्न समुद्री डाकुओं एवं लुटेरों की बढ़ती गतिविधियों को रोक पाने में असमर्थ रहे, क्योंकि प्रांतों के अधिकारों पर उनका नियंत्रण नहीं होने के बराबर रह गया। यही कारण था की हुनान प्रांत में चावल के निर्यात को रोकने के उद्देश्य से 1843 में विद्रोह हुआ। 1844 में फारमोसा में विद्रोह हुआ। क्वांगतुंग एवं हुनान में लगातार अराजकता की स्थिति बनी रही।
4. सामाजिक एवं आर्थिक असंतोष - चीन की जर्जरित सामाजिक एवं आर्थिक अव्यवस्था ने ताइपिंग विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की। वास्तव में, ताइपिंग विद्रोह के समय चीनी समाज मूलतः दो वर्गों में विभक्त हो गया। प्रथम वर्ग में निर्धन, कृषक, निर्धन मध्यम वर्ग एवं ग्रामीण सर्वहारा वर्ग था तो द्वितीय वर्ग में व्यवसायिक एवं शासकीय प्रतिष्ठानों से संबंध उच्च अधिकारी संपन्न वर्ग था। प्रथम वर्ग का जिस प्रकार संपन्न वर्ग द्वारा शोषण किया जा रहा था उससे प्रथम वर्ग में अत्यंत असंतोष था। ताइपिंग विद्रोह ने एक नई सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने का दावा किया था। अतः निर्धन व असहाय निर्बल वर्ग ने वर्ग ने खुले रूप में संपन्न वर्ग का विरोध करना प्रारंभ कर दिया था।
निर्बल एवं निर्धन वर्ग की विरोधी विचारधारा को जर्जरित आर्थिक स्थिति ने और अधिक झकझोर दिया। चीन में जनसंख्या का अनुपात जिस गति से बढ़ रहा था, उस अनुपात में कृषि का उत्पादन नगण्य ही था। जनसंख्या के तीव्र विकास ने कृषि पर दबाब डाल दिया, परंतु कृषि के साधन परंपरावादी बने रहने से कृषि व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ था। अतः कृषि से जीवन निर्वाह एक कठिन प्रश्न बन गया था। राजकीय करों एवं साहूकारों के करो से कृषक दब चुका था। आंग्ल-चीन युद्ध में चीन की पराजय ने चीन की आर्थिक स्थिति को और खराब कर दिया। नानकिंग की संधि के अनुबंधों के आधार पर चीन को जो क्षतिपूर्ति अदा करनी थी, उसकी पूर्ति के लिए चीनी सरकार ने राजकीय करों में वृद्धि की। इसका सीधा प्रभाव कृषक वर्ग पर पड़ा। वह साहूकार से ऋण लेने को विवश हो गया। ऋण की अदायगी न कर पाने पर उसे अपनी भूमि भी बेचनी पड़ी। अतः अनेक उदंड गुटों का निर्माण हुआ जिन्होंने लूटमार को अपना पेशा बनाया। इधर अफीम का आयात जिस प्रकार चीन में बढ़ रहा था उससे चांदी के सिक्के विदेशों को जा रहे थे। राजकीय कार्य चांदी के सिक्कों पर अवलंबित थे। अतः चीन अत्यंत निराशाजनक आर्थिक स्थिति के कगार पर खड़ा हो गया।
5. दक्षिण चीन में दुर्भिक्ष एवं वार्ड का प्रकोप - चीन की दुर्बल आर्थिक स्थिति पर 1846-47 में क्वांगशी, हुनान एवं क्वांगतुंग में लगातार होने वाले दुर्भिक्ष एवं बाढ़ ने तीव्र घातक प्रहार किया। मंचू शासक बाढ़ व दुर्भिक्ष से पीड़ित लोगों की सहायता कर पाने में असमर्थ रहे। अतः दक्षिणी चीन में गरीबी, महामारी एवं उत्पीड़न का जो भीषण जानलेवा दौर चल रहा था, उसने जन असंतोष को जन्म दिया।
6. गुप्त समितियों की क्रियाशीलता - केंद्रीय शासन की निर्बलता ने चीन में अनेक समितियों के जन्म में योगदान दिया। पाइल्यान-चिकाओ, सान हो हुई, थिएन ली हुई तथा हुंग मेन प्रमुख गुप्त समितियां थी। ये गुप्त समितियां क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत थी तथा इन्होंने अपने-अपने छोटे-छोटे संगठन बना लिए थे। नानकिंग की अपमानजनक संधि इनके लिए असहाय थी। चीन में विदेशी हस्तक्षेप एवं विदेशियों की उपस्थिति का इन संगठनों ने विरोध करना प्रारंभ कर दिया। प्रशासनिक निर्णयों का विरोध करने के लिए इन समितियों में अपने-अपने सैनिक संगठन भी कायम कर लिए थे। अतः यह गुप्त समितियां ताइपिंग विद्रोह की उग्रता में विशेष सहयोगी रही।
7. सैन्य दुर्बलता - मंचू शासन सैनिक तंत्र पर आधारित था। अतः प्रारंभिक मंचू शासकों ने सैन्य संगठन एवं सैन्य व्यवस्था पर विशेष बल दिया था, परंतु उत्तरवर्ती मंचू शासनकाल में प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार ने सैन्य संगठन को भी प्रभावित किया। अनेक सैनिक पदाधिकारियों ने सैनिकों को मिलने वाले वेतन को स्वंय रखना प्रारंभ कर दिया। निरीक्षण के समय मजदूरों व कुलियों को भर्ती किया जाने लगा। सैन्य प्रशिक्षण की कार्यकुशलता नष्ट होने लगी। सर्वसाधारण का विश्वास सेना पर से उठ गया। इस विश्वास को प्रथम अफीम युद्ध ने और पक्का कर दिया। अतः गुप्त समितियों के हृदय से प्रशासनिक सेना का भय समाप्त हो गया और वे विद्रोह के लिए पूर्ण मनोवेग से कटिबद्ध हो गए।
इस प्रकार स्पष्ट है कि मंचू शासन के विरोध में चीन में एक सम्मिलित प्रतिक्रिया जन्म जन्म ले रही थी। इस प्रतिक्रिया के मूल में मंचू शासन की समाप्ति एवं विदेशी हस्तक्षेप से चीन की मुक्ति प्रमुख उद्देश्य था। जनता भ्रष्टाचार, आर्थिक असंतोष एवं सामाजिक अव्यवस्था से ऊब चुकी थी और एक नई व्यवस्था की इच्छुक थी।
4. सामाजिक एवं आर्थिक असंतोष - चीन की जर्जरित सामाजिक एवं आर्थिक अव्यवस्था ने ताइपिंग विद्रोह की पृष्ठभूमि तैयार की। वास्तव में, ताइपिंग विद्रोह के समय चीनी समाज मूलतः दो वर्गों में विभक्त हो गया। प्रथम वर्ग में निर्धन, कृषक, निर्धन मध्यम वर्ग एवं ग्रामीण सर्वहारा वर्ग था तो द्वितीय वर्ग में व्यवसायिक एवं शासकीय प्रतिष्ठानों से संबंध उच्च अधिकारी संपन्न वर्ग था। प्रथम वर्ग का जिस प्रकार संपन्न वर्ग द्वारा शोषण किया जा रहा था उससे प्रथम वर्ग में अत्यंत असंतोष था। ताइपिंग विद्रोह ने एक नई सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने का दावा किया था। अतः निर्धन व असहाय निर्बल वर्ग ने वर्ग ने खुले रूप में संपन्न वर्ग का विरोध करना प्रारंभ कर दिया था।
निर्बल एवं निर्धन वर्ग की विरोधी विचारधारा को जर्जरित आर्थिक स्थिति ने और अधिक झकझोर दिया। चीन में जनसंख्या का अनुपात जिस गति से बढ़ रहा था, उस अनुपात में कृषि का उत्पादन नगण्य ही था। जनसंख्या के तीव्र विकास ने कृषि पर दबाब डाल दिया, परंतु कृषि के साधन परंपरावादी बने रहने से कृषि व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ था। अतः कृषि से जीवन निर्वाह एक कठिन प्रश्न बन गया था। राजकीय करों एवं साहूकारों के करो से कृषक दब चुका था। आंग्ल-चीन युद्ध में चीन की पराजय ने चीन की आर्थिक स्थिति को और खराब कर दिया। नानकिंग की संधि के अनुबंधों के आधार पर चीन को जो क्षतिपूर्ति अदा करनी थी, उसकी पूर्ति के लिए चीनी सरकार ने राजकीय करों में वृद्धि की। इसका सीधा प्रभाव कृषक वर्ग पर पड़ा। वह साहूकार से ऋण लेने को विवश हो गया। ऋण की अदायगी न कर पाने पर उसे अपनी भूमि भी बेचनी पड़ी। अतः अनेक उदंड गुटों का निर्माण हुआ जिन्होंने लूटमार को अपना पेशा बनाया। इधर अफीम का आयात जिस प्रकार चीन में बढ़ रहा था उससे चांदी के सिक्के विदेशों को जा रहे थे। राजकीय कार्य चांदी के सिक्कों पर अवलंबित थे। अतः चीन अत्यंत निराशाजनक आर्थिक स्थिति के कगार पर खड़ा हो गया।
5. दक्षिण चीन में दुर्भिक्ष एवं वार्ड का प्रकोप - चीन की दुर्बल आर्थिक स्थिति पर 1846-47 में क्वांगशी, हुनान एवं क्वांगतुंग में लगातार होने वाले दुर्भिक्ष एवं बाढ़ ने तीव्र घातक प्रहार किया। मंचू शासक बाढ़ व दुर्भिक्ष से पीड़ित लोगों की सहायता कर पाने में असमर्थ रहे। अतः दक्षिणी चीन में गरीबी, महामारी एवं उत्पीड़न का जो भीषण जानलेवा दौर चल रहा था, उसने जन असंतोष को जन्म दिया।
6. गुप्त समितियों की क्रियाशीलता - केंद्रीय शासन की निर्बलता ने चीन में अनेक समितियों के जन्म में योगदान दिया। पाइल्यान-चिकाओ, सान हो हुई, थिएन ली हुई तथा हुंग मेन प्रमुख गुप्त समितियां थी। ये गुप्त समितियां क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत थी तथा इन्होंने अपने-अपने छोटे-छोटे संगठन बना लिए थे। नानकिंग की अपमानजनक संधि इनके लिए असहाय थी। चीन में विदेशी हस्तक्षेप एवं विदेशियों की उपस्थिति का इन संगठनों ने विरोध करना प्रारंभ कर दिया। प्रशासनिक निर्णयों का विरोध करने के लिए इन समितियों में अपने-अपने सैनिक संगठन भी कायम कर लिए थे। अतः यह गुप्त समितियां ताइपिंग विद्रोह की उग्रता में विशेष सहयोगी रही।
7. सैन्य दुर्बलता - मंचू शासन सैनिक तंत्र पर आधारित था। अतः प्रारंभिक मंचू शासकों ने सैन्य संगठन एवं सैन्य व्यवस्था पर विशेष बल दिया था, परंतु उत्तरवर्ती मंचू शासनकाल में प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार ने सैन्य संगठन को भी प्रभावित किया। अनेक सैनिक पदाधिकारियों ने सैनिकों को मिलने वाले वेतन को स्वंय रखना प्रारंभ कर दिया। निरीक्षण के समय मजदूरों व कुलियों को भर्ती किया जाने लगा। सैन्य प्रशिक्षण की कार्यकुशलता नष्ट होने लगी। सर्वसाधारण का विश्वास सेना पर से उठ गया। इस विश्वास को प्रथम अफीम युद्ध ने और पक्का कर दिया। अतः गुप्त समितियों के हृदय से प्रशासनिक सेना का भय समाप्त हो गया और वे विद्रोह के लिए पूर्ण मनोवेग से कटिबद्ध हो गए।
इस प्रकार स्पष्ट है कि मंचू शासन के विरोध में चीन में एक सम्मिलित प्रतिक्रिया जन्म जन्म ले रही थी। इस प्रतिक्रिया के मूल में मंचू शासन की समाप्ति एवं विदेशी हस्तक्षेप से चीन की मुक्ति प्रमुख उद्देश्य था। जनता भ्रष्टाचार, आर्थिक असंतोष एवं सामाजिक अव्यवस्था से ऊब चुकी थी और एक नई व्यवस्था की इच्छुक थी।
ताईपिंग विद्रोह के परिणाम
विदेशी शक्तियों का सहयोग प्राप्त कर मंचू शासक ने ताइपिंग विद्रोह का दमन अवश्य कर दिया, परंतु इसके दूरगामी परिणामों से इनकार नहीं किया जा सकता। इस विद्रोह के निम्नलिखित महत्वपूर्ण परिणाम निकले -
1. चीन की कम्यून प्रथा का पूर्वगामी स्वरूप - 1854 ई0 में ताईपिंग विद्रोहियों ने नानकिंग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था और 1864 ई0 तक उन्होंने नानकिंग पर अपना आधिपत्य जमाये रखा। इन 10 वर्षों में विद्रोहियों ने नानकिंग पर अपना शासन चलाया। शासन संचालन 6 समितियों द्वारा संपादित होता था। परिवारों का संगठन कर एक प्रशासनिक इकाई बनाई गई। इस प्रशासनिक इकाई को स्वायत्त शासन प्राप्त था। आर्थिक जीवन के पहलुओं को निर्धारित करने के लिए सहकारी समितियों का गठन किया गया। वास्तव में, प्रशासन के संबंध में विद्रोहियों का यह कार्य चीन की कम्यून प्रथा का पूर्वगामी स्वरुप माना जा सकता है।
यही नहीं, भूमि सुधार के संबंध में भी इसी विद्रोह ने चीन की साम्यवादी व्यवस्था की पृष्ठभूमि तैयार की। ताईपिंग शासन में घोषित किया की "भूमि पर किसानों का अधिकार है, क्योंकि उस पर वे खेती करते हैं।" भूमि का राष्ट्रीयकरण कर उसे आवश्यकतानुसार परिवारों में विभाजित किया गया। उत्पन्न फसल से परिवार अपना भरण-पोषण करता एवं अतिरिक्त फसल सामूहिक गोदामों में रखने की व्यवस्था की गई। वास्तव में, इस धारणा ने व्यक्तिवादी भावना के स्थान पर, साम्यवादी भावना को जन्म दिया।
2. राष्ट्रीयता की भावना का विकास - ताईपिंग विद्रोह ने चीन के जनमानस में राष्ट्रीय भावना को उद्वेलित करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। चीनी अब खुलकर विदेशियों के बहिष्कार की बात करने लगे तथा मंचू सरकार को विदेशियों के हाथ की कठपुतली मानने लगे।
3. चीन में विदेशी प्रभुत्व का बढ़ना - ताईपिंग विद्रोह को कुचलने के लिए विदेशी शक्तियों ने चीन में हस्तक्षेप किया था। विद्रोह दमन के पश्चात सरकार पर विदेशी प्रभुत्व गहराता गया। रूस, इंग्लैंड, फ्रांस एवं जर्मनी ने चीन की विदेश नीति, आंतरिक प्रशासन एवं सैन्य व्यवस्था में अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयत्न प्रारंभ कर दिया। इससे चीन का सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास अवरुद्ध हो गया।
4. स्त्रियों की दशा सुधारने का प्रयत्न - ताईपिंग विद्रोहियों ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने का भी प्रयत्न किया। औरतों के पैर बांधकर रखने की प्रथा का उन्होंने अपने शासन में अंत किया। स्त्रियो को पुरुषों के समान शिक्षा एवं साम्पत्तिक अधिकार दिये गये। स्त्रियों के क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध लगाया गया। इस प्रकार चीन में स्त्रियों की स्वतंत्रता का आभास ताईपिंग विद्रोह की देन है।
5. नई कर पद्धति का जन्म - ताईपिंग विद्रोह के समय चीन की सरकार भीषण आर्थिक संकट में फँस गई। अतः उससे उबरने के लिए मंचू सरकार ने 'आंतरिक पारगमन कर' लगाया। इस कर ने चीन के औधोगिक विकास को अवरुद्ध कर दिया।
6. चीन की अपार क्षति - ताईपिंग विद्रोह का दमन करने के लिए जिस तरह विदेशी शक्तियों का आश्रय लिया गया उससे चीन का आंतरिक जीवन अव्यवस्थित हो गया। स्थान-स्थान पर विद्रोह होने लगे। गरीबी, भूखमरी एवं बीमारी का तांडव नृत्य स्थान-स्थान पर छा गया। लगभग दो करोड़ लोग कालकलवित हो गए। विदेशी शक्तियों को युद्ध क्षति एवं विद्रोह का दमन करने के लिए चीन की सरकार द्वारा विदेशी शक्तियों को जो अपार धनराशि देनी पड़ी उससे चीन की आर्थिक स्थिति चरमरा गई। मंचू सरकार की दयनीय स्थिति में प्रांतीय अधिकारियों को संगठित होने में सहायता दी। अब छोटी-छोटी बात के लिए मंचू सरकार प्रांतीय अधिकारियों की सेना पर निर्भर हो गई। इससे शक्ति केंद्र के हाथ से निकलकर प्रांतीय अधिकारी के पास पहुंच गई। फलस्वरुप प्रांतीय अधिकारी निरंकुश एवं उदण्ड हो गए। जनता के सम्मुख मंचू सरकार की हीन स्थिति स्पष्ट हो गई और अब वह ऐसी सरकार की समाप्ति के लिए कृत संकल्प हो गई। विनाके ने ठीक ही लिखा है, "यधपि यह विद्रोह असफल हो गया, परन्तु इसके दूरगामी परिणामों ने मंचू वंश का पतन प्रारम्भ कर दिया।
इस प्रकार उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में चीन में मंचू प्रशासन के विरोध में जिस बॉक्सर विद्रोह ने जन्म लिया वह कुचल तो दिया गया, परन्तु इसके परिणाम दूरगामी सिद्ध हुए। बॉक्सर विद्रोह की असफलता ने एक ऐसा वर्ग उत्पन्न कर दिया जो कि विद्रोह की असफलता का मूल कारण चीनी जनता का जागरूक न होना मानता था। इस प्रकार की विचारधारा रखने वाले वर्ग ने किसी भी विद्रोह से पहले चीनी जनता में जागरूकता आवश्यक बतलाया और यह स्पष्ट किया कि चीन में जागरूकता के लिए सुधार अपेक्षित हैं। अतः अब एक नया दौर आरम्भ हुआ जिसे सुधार आन्दोलन के रूप में जाना जाता है।
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यही नहीं, भूमि सुधार के संबंध में भी इसी विद्रोह ने चीन की साम्यवादी व्यवस्था की पृष्ठभूमि तैयार की। ताईपिंग शासन में घोषित किया की "भूमि पर किसानों का अधिकार है, क्योंकि उस पर वे खेती करते हैं।" भूमि का राष्ट्रीयकरण कर उसे आवश्यकतानुसार परिवारों में विभाजित किया गया। उत्पन्न फसल से परिवार अपना भरण-पोषण करता एवं अतिरिक्त फसल सामूहिक गोदामों में रखने की व्यवस्था की गई। वास्तव में, इस धारणा ने व्यक्तिवादी भावना के स्थान पर, साम्यवादी भावना को जन्म दिया।
2. राष्ट्रीयता की भावना का विकास - ताईपिंग विद्रोह ने चीन के जनमानस में राष्ट्रीय भावना को उद्वेलित करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। चीनी अब खुलकर विदेशियों के बहिष्कार की बात करने लगे तथा मंचू सरकार को विदेशियों के हाथ की कठपुतली मानने लगे।
3. चीन में विदेशी प्रभुत्व का बढ़ना - ताईपिंग विद्रोह को कुचलने के लिए विदेशी शक्तियों ने चीन में हस्तक्षेप किया था। विद्रोह दमन के पश्चात सरकार पर विदेशी प्रभुत्व गहराता गया। रूस, इंग्लैंड, फ्रांस एवं जर्मनी ने चीन की विदेश नीति, आंतरिक प्रशासन एवं सैन्य व्यवस्था में अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयत्न प्रारंभ कर दिया। इससे चीन का सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास अवरुद्ध हो गया।
4. स्त्रियों की दशा सुधारने का प्रयत्न - ताईपिंग विद्रोहियों ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने का भी प्रयत्न किया। औरतों के पैर बांधकर रखने की प्रथा का उन्होंने अपने शासन में अंत किया। स्त्रियो को पुरुषों के समान शिक्षा एवं साम्पत्तिक अधिकार दिये गये। स्त्रियों के क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध लगाया गया। इस प्रकार चीन में स्त्रियों की स्वतंत्रता का आभास ताईपिंग विद्रोह की देन है।
5. नई कर पद्धति का जन्म - ताईपिंग विद्रोह के समय चीन की सरकार भीषण आर्थिक संकट में फँस गई। अतः उससे उबरने के लिए मंचू सरकार ने 'आंतरिक पारगमन कर' लगाया। इस कर ने चीन के औधोगिक विकास को अवरुद्ध कर दिया।
6. चीन की अपार क्षति - ताईपिंग विद्रोह का दमन करने के लिए जिस तरह विदेशी शक्तियों का आश्रय लिया गया उससे चीन का आंतरिक जीवन अव्यवस्थित हो गया। स्थान-स्थान पर विद्रोह होने लगे। गरीबी, भूखमरी एवं बीमारी का तांडव नृत्य स्थान-स्थान पर छा गया। लगभग दो करोड़ लोग कालकलवित हो गए। विदेशी शक्तियों को युद्ध क्षति एवं विद्रोह का दमन करने के लिए चीन की सरकार द्वारा विदेशी शक्तियों को जो अपार धनराशि देनी पड़ी उससे चीन की आर्थिक स्थिति चरमरा गई। मंचू सरकार की दयनीय स्थिति में प्रांतीय अधिकारियों को संगठित होने में सहायता दी। अब छोटी-छोटी बात के लिए मंचू सरकार प्रांतीय अधिकारियों की सेना पर निर्भर हो गई। इससे शक्ति केंद्र के हाथ से निकलकर प्रांतीय अधिकारी के पास पहुंच गई। फलस्वरुप प्रांतीय अधिकारी निरंकुश एवं उदण्ड हो गए। जनता के सम्मुख मंचू सरकार की हीन स्थिति स्पष्ट हो गई और अब वह ऐसी सरकार की समाप्ति के लिए कृत संकल्प हो गई। विनाके ने ठीक ही लिखा है, "यधपि यह विद्रोह असफल हो गया, परन्तु इसके दूरगामी परिणामों ने मंचू वंश का पतन प्रारम्भ कर दिया।
इस प्रकार उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में चीन में मंचू प्रशासन के विरोध में जिस बॉक्सर विद्रोह ने जन्म लिया वह कुचल तो दिया गया, परन्तु इसके परिणाम दूरगामी सिद्ध हुए। बॉक्सर विद्रोह की असफलता ने एक ऐसा वर्ग उत्पन्न कर दिया जो कि विद्रोह की असफलता का मूल कारण चीनी जनता का जागरूक न होना मानता था। इस प्रकार की विचारधारा रखने वाले वर्ग ने किसी भी विद्रोह से पहले चीनी जनता में जागरूकता आवश्यक बतलाया और यह स्पष्ट किया कि चीन में जागरूकता के लिए सुधार अपेक्षित हैं। अतः अब एक नया दौर आरम्भ हुआ जिसे सुधार आन्दोलन के रूप में जाना जाता है।
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Causes and effects of the Taiping Rebellion |
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