महाभारत युद्ध के पश्चात् भारत अनेक राज्यों में विभक्त हो गया। वैदिक काल में आर्यों का राजनीतिक आधार जन था। उत्तर वैदिक काल में जनपद का विकास हुआ। राज्य की कल्पना भौगोलिक आधार पर होने लगी। छठी शताब्दी ई.पू. मे भारत में अनेक जनपद विद्यमान थे। बौद्ध ग्रन्थों में ऐसे अनेक जनपदों का उल्लेख मिलता है। उस समय भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता का अभाव था और देश में विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति विद्यमान थी। छोटे-छोटे जनपदों को मिलाकर महाजनपदों का निर्माण हुआ और ऐसे 'सोलह' या 'पोड्स' महाजनपदों का उल्लेख हमे बौद्ध साहित्य में मिलता है। अंगुत्तरनिकाय' में इस सोलह महाजनपदों का उल्लेख हमें बौद्ध साहित्य में मिलता है। 'अंगुत्तरनिकाय' इस महाजनपदों का वर्णन इस प्रकार है-अंग, मगाधू, काशी, कोशल, वृज्जि, मल्ल, चेदि, दस, पंचाल, मत्स्य, सूरसेन, अस्मक, अवन्ति, गन्धार, कम्बोज, वृज्जि, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पंचाल, मत्स्य, सूरसेन, अस्मक, अवन्ति, गन्धार, कम्बोज । इस युग को महाजनपदों का युग कहा जाता है। सोलह महाजनपदों की आठ पड़ोसी जोड़ियाँ इस प्रकार थी- अंग-मगध, काशी-कोशल, वृज्जि-मल, चेदि-वत्स, कुरु-पंचाल, मत्स्य-सूरसेन, अस्मक-अवन्ति और गान्धार-कम्बोज। प्रत्येक राज्य अपने आपमे स्वतंत्र था। इन राज्यों में परस्पर संघर्ष चल रहा था और उनमें साम्राज्य प्रवृत्ति का प्रादुर्भाव हो रहा था। शक्तिशाली राज्य अपनी शक्ति एवं सीमा के विस्तार में संलग्न थे तथा वे निर्बल राज्यों को हड़पने का प्रयास कर रहे थे। सभी शक्तिशाली राज्य सम्पूर्ण उत्तर भारत में अपना एकछत्र साम्राज्य स्थापित करने का स्वप्न देख रहे थे। राजतंत्रात्मक राज्यों की शक्ति बढ़ रही थी तथा गणतंत्रात्मक राज्यों का पतन हो रहा था।
इस युग के सोलह महाजन पदों का विवरण इस प्रकार है 1. अंग (Anga), 2. मगध (Magadh), 3. काशी (Kashi), 4. कौशल (Koshal), 5. वज्जि (Vajji), 6. मल्ल (Malla), 7. चेदि (Chedi), 8. वत्स (Vatsa), 9. कुरू (Kuru), 10. पांचाल (Panchal), 11. मत्स्य (Matsya), 12. शूरसेन (Shursen), 13. अस्मक (Asmaka), 14. अवन्ती (Awanti), 15. कम्बौज (Kamboja), 16. गान्धार (Gandhara)
ये सभी राज्य बड़े-बड़े राज्य नहीं थे, बल्कि छोटे-छोटे थे। इनके आपस में संघर्ष होता रहता था। एक दूसरे के कुछ भाग को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लेते थे। धीरे-धीरे कई राज्यों का पतन हो गया। इसमें से केवल चार राज्य रह गये, जो निम्नलिखित हैं 1. अवन्ती, 2. कौशल, 3. वत्स, 4. मगध।
(1) कोशल राज्य : कोशल एक अत्यंत ही प्राचीन राज्य था जहाँ दशरथ और राम आदि ने राज किया था। काल-क्रम में इनका पतन हो गया, परन्तु छठी शताब्दी ई०पू० में कंस के काल में इसका पुनरुत्थान हुआ था। कंस ने काशी को कोशल में मिला लिया था जिससे कोशल राज्य में काफी प्रगति आ गई थी। बुद्धकालीन प्रसेनजित ने तो वास्तव में कोशल में चार चाँद लगा दिया था। उसने तक्षशिला में विश्वविद्यालय की स्थापना करवायी थी जिसकी कीर्ति विश्व के कोने-कोने में फैल गई थी। वह उदार और दानी था। वह बुद्ध का अनन्य भक्त और प्रमी था। वह विषम परिस्थितियों में बुद्ध से सलाह लिया करता था। प्रसेनजित के पिता महाकौशल ने अपनी अति प्रिय पुत्री की शादी मगध नरेश बिम्बसार के साथ कर दी थी। इन वैवाहिक संबंधों से कोशल और मगध के बीच झगड़े का कारण बन गया। इस झगड़े से दोनों देशों को बहुत क्षति उठानी पड़ी।
कोशल के तीन प्रसिद्ध नगर (अयोध्या, साकेत और श्रावस्ती) थे। ये तीनों नगर बहुत ही उन्नत थे, जहाँ हर तरह की चीजा का व्यापार खूब होता था, प्रसेनजित एक कुशल शासक था। वह अपने मंत्रियों की सलाह से कोशल पर राज्य करता था लेकिन वह कुछ नीच मंत्रियों से विक्षुब्ध रहा करता था। अंत में एक मंत्री ने उससे विद्रोह करके उसके पुत्र विडूा को राजसिंहासन पर बैठा दिया। विवश होकर प्रसेनजित ने अजातशत्रु से मदद माँगी। वह उसे समय पर मदद न पहुँचा सका। वह सभी विपत्तियों को झेलता हुआ राजगृह तक पहुँचा था परन्तु कही से उसे मदद न मिली अन्त में राजद्वार पर गिर जाने से उसकी मृत्यु हो गई।
अब कोशल का राजा उसका पुत्र विडुदम हुआ। वह अयोग्य शासक था। उसने कोशल की मान-मर्यादा को थोड़े ही दिनों में खो दिया। वह कोशल का कलंक सिद्ध हुआ। उसने शक्यों पर चढ़ाई कर बड़ी संख्या में शाक्यों को मार डाला था। इतना ही नहीं, उसने शाक्यों का एकदम ही विध्वंश कर डाला। फलत: कपिलवस्तु पूर्ण रुप से वीरान हो गई। अन्त में कोशल राज्य मगध राज्य से मिला दिया गया।
(2) मगध राज्य : मगध पर पुराणों के अनुसार शिशुनाग वंश का शासक राजा बिम्बसार राज्य करता था। बिम्बसार भट्टिया नामक एक साधारण मांडलिक का पुत्र था। उसकी पहली राजधानी गिरिब्रज में थी, परन्तु बाद में उसने राजगृह को अपनी राजधानी बना ली। बिम्बसार एक कुशल शासक था। उसने अपना राजनैतिक प्रभाव वैवाहिक संबंधों से बढ़ाया। उसकी पहली रानी कोशल नरेश प्रसेनजित की भगिनी कोशल देवी थी। इसके दहेज में बिम्बसार को काशी राज्य मिला था। उसकी दूसरी रानी लिच्छिवी के चेटक की कन्या चेल्हना थी। उसकी तीसरी रानी क्षेमाभद पंजाब की राजकुमारी थी। इन वैवाहिक संबंधों से मगध की प्रतिष्ठा काफी बढ़ गई थी। इसके अतिरिक्त बिम्बसार ने राजनैतिक मित्रता के द्वारा भी मगध के साम्राज्य की सीमा का विस्तार किया। गाधार राज्य का राजदूत उसके राज्य में आया था। उसने रण-कौशल से भी अपने राज्य का विस्तार किया। उसने ब्रहादत्त को हराकर अंग को मगध में मिला लिया। फलत: अंग के सभी बड़े-बड़े नगर मगध के अधीन हो गये। जब बुद्ध उसकी राजधानी राजगृह में आये थे तो बिम्बसार ने बौद्ध धर्म को स्वीकर कर लिया था। वह महावीर स्वामी का अनुयायी था।
अजातशत्रु : बिम्बसार के बाद उसका पुत्र अजातशत्रु मगध की गद्दी पर बैठा। वह कुणिक के नाम से प्रसिद्ध था। वह राजकार्य में माहिर था। अपने चचेरे भाई देवदत्त के बहकावे में आकर अपने पिता को ही बन्दी बना कर जेल में उसे भूखा मार डाला। अतः वह अपने पिता का वध कर मगध का राजा बना था। पिता के बध के बाद वह बुद्ध से मिला था और इस पाप के प्रति शोक प्रकट किया था। तब बुद्ध ने उससे कहा था- जाओ फिर पाप न करना।
अजातशत्रु ने कोशल राज्य पर चढ़ाई कर वहाँ के राजा प्रसेनजित की पुत्री वजीरा से शादी कर ली और काशी राज्य पर उसका पुन अधिकार हो गया। अजातशत्रु ने राज्य की दूसरी प्रमुख घटना थी लिच्छिवों के साथ उसका संघर्ष। इस संघर्ष में अजातशत्रु ने विजय प्राप्त करने के लिए सभी उपायों का सहारा लिया। काफी समय तक दोनो में संघर्ष चलता रहा। परन्तु अन्त में अजातशत्रु को विजयश्री मिली। अब लिच्छिवियों का राज्य मगध में विलीन हो गया। धीरे-धीरे अंग, काशी और वैशाली, मगध राज्य के अन्तराल में समा गये। अजातशत्रु अपने शुरु के दिनों में जैन धर्म का अनुयायी था परन्तु महात्मा बुद्ध के निर्वाण-प्राप्ति के बाद वह बौद्ध हो गया।
(3) वत्स राज्य : वत्स एकतंत्र राज्य था। कौशाम्बी उसकी राजधानी थी जो व्यापार का एक बहुत बड़ा केन्द्र था। कौशाम्बी के प्रसिद्ध नगर वाराणसी, राजगृह, वैशाली, श्रावस्ती और तक्षशिला थे। यहाँ की प्रजा खुशहाल थी। छठी शताब्दी ई० पू० में कौशाम्बी का राजा उदयन था। वह युद्धप्रिय और शक्तिशाली राजा था। उसने अजातशत्रु तथा अवन्तिधिपति प्रज्योट दोनों के साथ वैवाहिक संबंध जोड़ा था। इस वैवाहिक संबंध में उदयन की स्थिति अत्यधिक सुरक्षित हो गई थी। अवन्ति की राजकुमारी वासवदत्ता अगराजा की राजकुमारी और मगध की राजकुमारी पद्मावती से उसने शादी कर ली थी। उसके इन वैवाहिक संबंधों का बहुत महत्व था। डाo B. B.Low के शब्दों में यदि उदयन ने ये संबंध स्थापित न किये होते तो मगध और अवन्ति की बढ़ती हुई शक्ति के सामने कौशाम्बी कभी कुचल दी गई होती। लेकिन उसने बुद्ध के उपदेश से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था। तब से कौशाम्बी बौद्ध धर्म के प्रचार का एक बहुत बड़ा केन्द्र बन गया। वह बड़ा विलासी था। उसकी मौत के बाद यह राज्य अवन्ति राज्य में मिला लिया गया।
(4) अवन्ति का राज्य : बुद्ध काल में अवन्ति का राजा प्रज्योत या प्रद्योत था। वह क्रूर और युद्धप्रिय राजा था। उसने अपनी राजधानी उज्जैन को बनाया था। वह पड़ोस के सभी राज्यों से कर वसूलता था। उसने उदयन को कैद कर वत्स को अपने राज्य में मिला लिया था। उसको गोपाल और पालक दो पुत्र थे। गोपाल ने अपने भाई के लिए राजगद्दी छोड़ दी थी। परन्तु पालक बहुत दिनों तक शासन नहीं कर सका। अन्न के दिनों में प्रद्योत ने बौद्ध धर्म को मान लिया था। तब से अवन्ति बौद्ध धर्म के प्रचार का सबसे बड़ा केन्द्र बन गया। बुद्धकालीन भारत में 16 महाजन पदों और चार राजतंत्र राज्यों के अलावे बहुत से गणराज्य थे-
(1) कपिलवस्तु : कपिलवस्तु पर शाक्यों का राज्य था जो हिमालय पहाड़ की तराई में बसा हुआ था। इस राज्य की राजधानी कपिलवस्तु ही थी जहाँ पर महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था। (2) वैशाली के लिच्छवी- आधुनिक बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिला (आजकल वैशाली जिला) के बसाढ़ ग्राम के निकट वैशाली स्वामी का जन्म हुआ था। (3) सुसमगिरी के भाग (4) अल्लकम्प के बुल्ली, (5) केसपुत्र के कलाम, (6) रामग्राम के कोलिय, (7) पिप्पलिवन के मोरिय, (8) कुशीनगर के यल्ल, (9) पावा के मल्ल और (10) मिथिला के विदेह आधुनिक जनकपुर में ही मिथिला थी। मिथिला ही इसकी राजधानी थी। जातक के अनुसार मिथिला एक बहुत बड़ा व्यापारिक नगर था। दूर-दूर के व्यापारी यहाँ व्यापार करने के लिए आते थे।
इन सभी गणराज्यों की शासन व्यवस्था लोकतंत्रात्मक थी। इनकी शासन सत्ता समूह में निहित थी। गण पंचायती राज्य थे। सभी तरह की समस्याओं का समाधान परिषद के द्वारा किया जाता था। निर्णय करने के लिए बैठने की जगह को संस्थागार कहा जाता था। बहुमत को जानने के लिए मतदान होता था। इनमें मंत्रिमंडल की भी व्यवस्था थी। राज्य के तीन (सेना, अर्थ और न्याय) प्रमुख विभाग होते थे। सैनिक शिक्षा अनिवार्य थी। अर्थविभाग के मुख्य अधिकारी को मंडागारिक कहा जाता था। साधारण न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील होती थी। प्रजा हर तरह से सुखी थी। संक्षेप में यही बुद्धकालीन भारत की राजनैतिक दशा थी। इन चारों राज्यों में भी संघर्ष जारी रहा। अन्त में ये सभी राज्य मगध में मिला लिये गये।
मगध के शक्तिशाली होने के कारण (Causes for Magadh's becoming a great power) : ई० पू० छठी शताब्दी में 16 महाजनपद पद थे। आगे चलकर इनकी संख्या घटकर चार रह गयी। इसमें मगध सर्वाधिक शक्तिशाली हो गया। इसके निम्नलिखित कारण थे-
(1) मगध के शक्तिशाली होने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण वहाँ के शासकों का योग्य और साहसी होना था। इस साम्राज्य के बढ़ाने में बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदय भद्र, शिशुनाग, महापद्मनन्द जैन शासकों का योगदान था। इन्होंने आर्थिक एवं सैनिक साधनों का कुशलता से प्रयोग किया।
(2) मगध की भौगोलिक स्थिति अत्यन्त उपयुक्त थी। इसलिए उसे विकसित होने के लिए पर्याप्त सुविधा प्राप्त हुई। उसके आस-पास के जंगलों में हाथी प्राप्त हुए। हथियार बनाने के लिए लोहे की अनेक खानें थी। उज्जैन को जीत लेने से उसकी खानों की संख्या और बढ़ गयी। लोहे के हथियारों का प्रयोग जंगलों को साफ करने में किया गया। गंगा नदी के कारण यातायात की सुविधा अधिक हो गयी।
(3) मगध की राजधानियाँ अत्यन्त सुरक्षित थी। उसकी एक राजधानी राजगिरि या राजगृह थी, जो पहाड़ियों से घिरी हुई थी। दूसरी राजधानी पाटलीपुत्र थी। यह कई नदियों के संगम पर स्थित थी। नदियों के द्वारा यहाँ के लोग दूसरे राज्यों पर आसानी से आक्रमण कर सकते थे।
(4) मगध एक उपजाऊ प्रदेश था। इसके कारण यह शीघ्र सम्पन्न हो गया। कृषि और व्यापार से वह धनी हो गया था।
(5) मगध में अनेक जगहों का विकास हुआ। इन नगरों में अनेक प्रकार के उद्योग धन्धे स्थापित थे जिससे पर्याप्त आर्थिक लाभ हुआ।
(6) मगध राज्य में कुशल सैनिक संगठन था, जिसके बल पर वहाँ के शासकों ने अनेक राज्यों पर विजय की।
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The Sixteen Mahajanapadas in the 6th Century B.C. |
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