Friday, 15 July 2022

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Chinese Revolution of 1911

 1911 की चीनी क्रांति 


चीन में मंचूवंश की स्थापना सतरहवीं शताब्दी में हुई थी और 1911 ई० तक चीन पर इस राजवंश का शासन चलता रहा। इस राजवंश के शासनकाल के पूर्व चीन एक समृद्ध देश था। परंतु मंचू-राजवंश के उत्तरकालीन शासन में राजनीतिक दृष्टि से चीन की अवस्था बहुत खराब हो गई। फलतः उन्नीसवीं शताब्दी में चीन विदेशी साम्राज्यवाद का बुरी तरह शिकार हो गया। कुशासन निर्धनता और विदेशी प्रभाव से चीन के लोग एकदम तंग हो गए। इसके विरूद्ध उनमें राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ और देश के कई क्रांतिकारी दल संगठित होने लगे। 1911 ई० में डॉ० सनयात सेन के नेतृत्व में मंचू राजवंश के विरूद्ध एक भयंकर विद्रोह हुआ, जिसे 1911 ई० की चीनी क्रांति कहते थे। इस विद्रोह ने चीन से मंचू-राजवंश को समाप्त कर दिया तथा वहाँ गणतंत्र की स्थापना की।


1911 ई० की क्रांति के कारण- 1911 ई० के चीन की क्रांति के निम्नलिखित कारण थे- 1. मंचू-राजवंश की दुर्बलता- उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में चीन की क्रांति बहुत खराब हो गई थी। खेती और उद्योग-धंधे नष्ट हो गये थे। गरीबी तथा बेकारी बढ़ रही थीं। शासन में भ्रष्टाचार फैल रहा था। चीन पर यूरोप के साम्राज्यवादी राज्यों का प्रभाव स्थापित हो रहा था। विदेशियों को चीन में हर तरह की नाजायज सुविधाएँ मिल रही थीं। इससे चीनी जनता का शोषण हो रहा था। इन सबके लिए चीन की जनता मंचू-राजवंश को उत्तरदायी मानती थी।


2. आर्थिक दुर्दशा - उस समय खेती और उद्योग-धंधों के नष्ट होने के कारण चीन की आर्थिक अवस्था दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी। एक ओर जनसंख्या में अति तीव्र गति से वृद्धि हो रही थी और दूसरी ओर सरकार की ओर से कृषि और उद्योग-धंधों के विकास एवं उन्नति के लिए कोई कार्य नहीं हो रहा था। इसलिए चीनी जनता में प्रशासन के प्रति बड़ा क्षोभ था।


3. पाश्चात्य जगत से संपर्क (बौद्धिक जागरण ) - बीसवीं शताब्दी में यूरोपीय देशों के साथ चीन का संपर्क स्थापित हुआ। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से बहुत-से चीनी विद्यार्थी यूरोप और अमेरिका गए। वहाँ उन्हें क्रांतिकारी साहित्यों के अध्ययन का अवसर मिला। जब ये युवक स्वदेश लौटे तो अपने देश की तुलना यूरोपीय देशों के साथ करने लगे और यूरोपीय देशों के समान चीन को उन्नत बनाने का स्वप्न देखने लगे। उन्हें मंचू-राजवंश के निरंकुश शासन से बड़ी घृणा हो गई। वे उसका अंत करने के लिए व्यग्र हो उठे।


4. जनसंख्या में वृद्धि तथा प्राकृतिक प्रकोप - चीन की आबादी बड़ी तेजी से बढ़ रही श्री पर, वहाँ खाद्यान्न की कमी थी। शासन का इस ओर ध्यान नहीं था। फिर दुर्भिक्ष, महामारी, याह आदि प्राकृतिक प्रकोपों के कारण लोग वाह थे। 1910-11 में चीन की कई नदियों में भयंकर बाद आई इससे खेती नष्ट हुई हो, लाखों लोग बेघर हो गए तथा भूखों मरने लगे। लोगों को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली। 


5. डॉ० सनयात सेन का योगदान - डॉ० सनयात सेन को 1911 ई० की 'क्रांति का जनक' कहा जाता है। डॉ० सनयात सेन चीन की दुर्दशा का एकमात्र कारण मंचू-राजवंश को ही मानते थे। अतः, उन्होंने चीन की व्यवस्था में सुधार लाने के लिए तुंग-सँग हुई नामक राजनीतिक दल का संगठन किया। इसी दल ने क्रांति का सूत्रपात कर मंचू-राजवंश का अंत किया।


6. स्वदेशी रेलमार्ग योजना की अस्वीकृति ( तात्कालिक कारण) - चीन में रेलमार्गों के निर्माण कार्य बड़ी तेजी से चल रहा था। 1921 ई० में चीन के धनीमानी लोगों ने रेलमार्ग-संबंधी एक स्वदेशी योजना मंचू सरकार के समक्ष प्रस्तुत की। पर, सरकार ने उनकी योजना अस्वीकृत कर दी और बदले में एक विदेशी योजना स्वीकार कर ली। इससे सारे देश में असंतोष की ज्वाला भड़क उठी।


उपर्युक्त सभी कारणों को लेकर 1911 ई० में चीन में एक महान क्रांति हो गई। सर्वप्रथम हँकाऊ के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। शीघ्र ही विद्रोह की आग सारे देश में फैल गई। इस क्रांति में डॉ० सनयात सेन द्वारा स्थापित 'तुंग-मंग हुई' दल ने सक्रिय रूप से भाग लिया। जब स्थिति बहुत गंभीर हो गई तो मंचू-सम्राट ने सिंहासन त्याग दिया और क्रांतिकरयों ने राजतंत्र का अंत कर चीन में गणतंत्र की स्थापना की। डॉ० सनयात सेन को इस गणतंत्र का प्रधान बनाया गया।


क्रांति की असफलता - यद्यपि 1911 ई० की क्रांति में दो हजार वर्ष पुराने राजवंश का अंत हो गया और गणतंत्र की स्थापना हुई तथापि क्रांति का उद्देश्य सफल नहीं हो सका। चीन में सही अर्थों में प्रजातंत्र की स्थापना नहीं हो सकी।


क्रांति की असफलता के निम्नलिखित कारण थे - (i) राष्ट्रीयता की भावना का अभाव - मंचू-शासनकाल में चीन कई स्वतंत्र प्रदेशों में बैठा हुआ था। इनकी शासन-व्यवस्था अलग-अलग थी। लोग चीन को एक राष्ट्र के रूप में नहीं देखते थे। उनमें राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था । 

(ii) चीन की सामंतवादी पद्धति - चीन में अब भी सामंतवादी का बोलबाला था। चीन के सामंत नहीं चाहते थे कि किसी तरह के प्रजातंत्र का विकास हो। वे नहीं चाहते थे कि चीन की राजसत्ता डॉ० सनयात सेन जैसे उग्रवादी विचारवाले नेता के हाथों में रहे। अतः, 1911 ई० की क्रांति असफल रही।


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