Friday, 4 March 2022

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Achievements of Chandragupta Maurya

ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में मगध साम्राज्य की बागडोर नंदवंश के हाथों में चली गयी । नन्दवंश के अन्तिम शासक धननन्द के समय भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर सिकन्दर का आक्रमण हुआ और सिकन्दर की विजय के परिणामस्वरूप उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त के अनेक गणराज्यों का अन्त हो गया और वहाँ यूनानी शासन व्यवस्था लागू हो गयी। परन्तु 323 ई. पूर्व में सिकन्दर की अचानक मृत्यु हो जाने से यह समस्त व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी और यूनानी शासक के विरुद्ध चारों ओर विद्रोह की अग्नि भड़क उठी तथा भारत ने यूनानी परतंत्रता का जुआ उतार फेंका। इस विद्रोह या क्रांति का नेतृत्व चन्द्रगुप्त मौर्य ने किया और मगध में मौर्य वंश की स्थापना की।


चन्द्रगुप्त मौर्य की जाति एवं वंश के बारे में विद्वानों में मतभेद है, जो कि अभी तक दूर नहीं हो पाये हैं। चन्द्रगुप्त मौग्र की जाति एवं वंश के बारे में प्रमुख मत हैं


पहले मत के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य नन्द वंश के राजा महापद्मनन्द की 'मुरा' नामक दासी का पुत्र था। इसलिए चन्द्रगुप्त एवं उसके वंशज मौर्य कहलाये। इस प्रकार मौर्य लोग शूद्र कुल के ठहरते हैं, परन्तु यह मत ठीक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि यदि चन्द्रगुप्त शूद्र कुल का होता तो चाणक्य जैसा कट्टर ब्राह्मण कभी उसका साथ न देता और न ही उसको राजा बनने देता।


दूसरे मत के अनुसार, जिसमें बौद्ध ग्रन्थ आते हैं मौर्य शब्द प्राकृत भाषा के 'मोरिय' शब्द का रूपान्तर है। 'मोरिय' क्षेत्रिय थे, जो नेपाल की तराई में 'पिप्लिवन' नामक राज्य पर शासन करते थे। 'महापरिनिर्वाण' तथा 'दिव्यावदान' बौद्ध ग्रंथों में भी चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय माना गया है।


तीसरा मत 'परिशिष्टपर्वन के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य मयूर पालकों के सरदार की एक कन्या का पुत्र था, जो क्षत्रिय वंश का था।


अधिकांश इतिहासकार अब इस बात को स्वीकार करते हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय राजकुमार था। उसने जिस राजवंश की स्थापना की वह मौर्य वंश कहलाया तथा जिस काल में उनके वंशजों ने शासन किया, वह मौर्यकाल कहलाया।


चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवनृत्त


चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवनृत्त का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत दिया गया है-


1. चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रारम्भिक जीवन: चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म लगभग 345 ई. पूर्व में हुआ था। इसके पिता सम्भवतः अपने राज्य से शत्रुओं द्वारा भगाये जाने पर पाटलिपुत्र के समीप आकर रहने लगे थे। चन्द्रगुप्त के पिता ने नन्द राजा की सेवा में नौकरी कर ली। परन्तु नन्द राजा और चन्द्रगुप्त के पिता में अनबन होने पर नन्द राजा ने चन्द्रगुप्त के पिता को मरवा डाला। उस समय चन्द्रगुप्त माँ के गर्भ में था। चन्द्रगुप्त की माँ छिपकर पाटलिपुत्र में ही बनी रही। जब चन्द्रगुप्त कुछ बड़ा हुआ तो उसने नन्द राजा की सेना में नौकरी कर ली। अपनी योग्यता एवं साहस से वह सेना का उच्च अधिकारी बन गया। वह जनता में लोकप्रिय हो गया जो कि नन्द शासक को अच्छा नहीं लगा और उसने चन्द्रगुप्त की हत्या करवाने की सोची। चन्द्रगुप्त को इस बात का पता लग गया और वह पाटलिपुत्र से भाग निकला। इस घटना ने चन्द्रगुप्त मौर्य के मस्तिष्क में नन्द वंश को समाप्त करने का दृढ़ निश्चय उत्पन्न कर दिया।


2. चाणक्य से मित्रता : इसी समय चन्द्रगुप्त की मित्रता चाणक्य नामक एक विद्वान ब्राह्मण से हुई। चाणक्य का भी नन्द राजा के हाथों घोर अपमान हो चुका था। इस पर चाणक्य ने भी नन्द वंश का अन्त करने की प्रतिज्ञा कर रखी थी। चन्द्रगुप्त मौर्य को उसकी योजना में उसको सहयोग देने वाला साथी मिल गया।


3. नन्दवंश के विरुद्ध विद्रोह अग्नि भड़काना : चन्द्रगुप्त एवं चाणक्य ने नन्द राजा के विरुद्ध विद्रोह भड़काना तथा नन्द राजा को पराजित करने के साधन जुटाना प्रारम्भ कर दिया। तैयारियां पूरी करने के बाद उन्होंने मगध पर आक्रमण कर दिया, जिसको नन्द राजा ने बुरी तरह विफल कर दिया। चन्द्रगुप्त और चाणक्य मगध राज्य से भाग गये। वे मगध पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगे। चन्द्रगुप्त तो बहुत बड़ा विद्वान तथा राजनीति का प्रकाण्ड पण्डित था। चाणक्य पश्चिमोत्तर सीमा प्रदेशों की कमजोरियों को खूब जानता था। उसे आशंका लगी रहती थी कि यह प्रदेश कभी भी विदेशी आक्रमणकारी के हाथों पड़ सकता है। अतएव इस प्रदेश के छोटे-छोटे राज्यों को समाप्त कर वह एक शक्तिशाली राज्य स्थापित करना चाहता था।


4. सिकन्दर की सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न : नन्द राजाओं पर आक्रमण करने के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य सिकन्दर के पास गया। परन्तु चन्द्रगुप्त के स्वतंत्र विचारों के कारण सिकन्दर उससे अप्रसन्न हो गया और उसे मरवाने की आज्ञा दे दी, परन्तु चन्द्रगुप्त किसी प्रकार वहाँ से बच निकला। अब तो उसने नन्द राजाओं के साथ-साथ यूनानियों को भी भारत से खदेड़ने का निश्चय कर लिया।


5. चन्द्रगुप्त मौर्य एक विजेता के रूप में पंजाब पर अधिकार : अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए अब चन्द्रगुप्त और चाणक्य ने पश्चिमोत्तर प्रदेश की जनता को विदेशियों के विरुद्ध भड़काना आरम्भ किया। सिकन्दर के भारत से चले जाने के पश्चात् भारतीयों ने यूनानियों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। चन्द्रगुप्त ने इन विद्रोहियों का नेतृत्व किया और यूनानियों को पंजाब से भगाना प्रारम्भ किया। यूनानी सैनिक भारत छोड़कर भाग गये और जो यहाँ रह गये, उनको मरवा दिया गया। इस प्रकार चन्द्रगुप्त ने सम्पूर्ण पंजाब पर अपना आधिपत्य कर लिया। डॉ. सत्यकेतु विद्यालंकार का कहना है कि "इस प्रकार चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में भारतीय विद्रोह को सफलता प्राप्त हुई और पंजाब तथा सीमा प्रान्त चन्द्रगुप्त के अधिकार में आ गए।" 321 ई. पूर्व तक या इसी वर्ष में झेलम से लेकर सिन्धु तक का प्रदेश भी यूनानियों से छीन लिया गया। इसकी पुष्टि 321 ई. पूर्व में यूनानी सेनानायकों के मध्य सम्पन्न ट्रिपैरेडिसस की संधि से भी होती है। इसके कारण इसी वर्ष सिन्धु में नियुक्त क्षत्रप पैथान को भी हटा लिया गया। इस प्रकार सिन्धु और पंजाब पर चन्द्रगुप्त का अधिकार हो गया।


6. मगध राज्य पर आक्रमण : पंजाब को अपने अधिकार में करने के पश्चात् उसने मगध राज्य पर आक्रमण कर दिया और उसकी सेना आगे बढ़ती हुई पाटलिपुत्र के निकट पहुँच गई। नन्द राजा धननन्द की पराजय हुई और वह युद्ध में मारा गया। अब 322 ई. पूर्व में चन्द्रगुप्त मगध के सिंहासन पर बैठ गया और चाणक्य ने उसका राज्याभिषेक कर दिया। डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी ने इस संबंध में लिखा है कि 323 ई. पूर्व की जून में सिकन्दर की अकाल मृत्यु हो जाने के बाद यवन शक्ति का विध्वंस और नंदों की पराजय सिकन्दर की मृत्यु के दो-तीन वर्षे के भीतर ही संपादित हो चुकी होगी। अतः चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण की तिथि हम 321 ई. पू. रख सकते हैं। डॉ. विमल चन्द्र पाण्डेय के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य 322 ई. पूर्व में मगध की गद्दी पर बैठा अधिकांश विद्वान भी चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि 322 ई. पूर्व मानते हैं।


7. पश्चिम भारत के प्रदेशों पर विजय : चन्द्रगुप्त मौर्य ने पश्चिमी भारत में सौराष्ट्र तक के सभी प्रदेशों पर भी विजय प्राप्त की थी। रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है। कि सौराष्ट्र का प्रदेश चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में शामिल था। यहाँ उसने पुष्यगुप्त को अपना गवर्नर नियुक्त किया था और पुष्यगुप्त ने ही सुदर्शन नाम की झील बनवाई थी।


8. दक्षिण भारत पर विजय : अधिकांश विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने दक्षिणी भारत पर भी अधिकार किया था। अशोक का साम्राज्य मैसूर तक फैला हुआ था। चूंकि अशोक ने कलिंग के अतिरिक्त अन्य किसी प्रदेश पर विजय प्राप्त नहीं की, इसलिए दक्षिणी भारत की विजय का श्रेय चन्द्रगुप्त के दिया जा सकता है।


9. सेल्यूकस से संघर्ष भारत के विभिन्न प्रदेश जीतने के पश्चात् चन्द्रगुप्त का युद्ध सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर से हुआ। 305 ई. पूर्व में सिन्धु नदी के तट पर चन्द्रगुप्त मौर्य तथा सेल्यूकस की सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसमें सेल्यूकंस की पराजय हुई और विवश होकर उसको चन्द्रगुप्त से सन्धि करनी पड़ी। सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलन का विवाह भी चन्द्रगुप्त से कर दिया। सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य को काबुल, कन्धार, हिरात तथा बिलोचिस्तान के प्रदेश दे दिये। उसने चन्द्रगुप्त के दरबार में मेगस्थनीज नामक अपना राजदूत भी रख दिया। चन्द्रगुप्त ने उपहारस्वरूप 500 हाथी सेल्यूकस को दिये।


10. अन्य विजयें : रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि सौराष्ट्र का प्रदेश चन्द्रगुप्त मौर्य के अधीन था। यहाँ उसने पुण्यगुप्त को अपना गवर्नर नियुक्त किया था। इसके अतिरिक्त अवन्ति पर भी चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार था। अधिकांश विद्वानों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने दक्षिणी भारत पर भी विजय प्राप्त की थी। कुछ विद्वानों के अनुसार अशोक ने केवल कलिंग पर ही विजय प्राप्त की थी, अतः कश्मीर पर चन्द्रगुप्त मौर्य ने ही अधिकार किया था। नेपाल और बंगाल भी चन्द्रगुप्त मौर्य के अधीन थे। महास्थान अभिलेख से बंगाल पर चन्द्रगुप्त मौर्य के आधिपत्य की पुष्टि होती है।


11. चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तार : अनेक विजय प्राप्त करके चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने साम्राज्य की सीमायें उत्तर-पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में तिनावली तक फैला दीं। इतना विशाल एकछत्र साम्राज्य भारत में पहले कभी स्थापित नहीं हुआ था। डॉ. विमलचन्द्र पाण्डेय का कथन है कि “चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य हिन्दुकुश से लेकर बंगाल तक और हिमालय से लेकर मैसूर तक विस्तृत था। इसके अन्तर्गत अफगानिस्तान और बिलोचिस्तान के प्रदेश पंजाब, सिन्धु, कश्मीर, नेपाल, गंगा, यमुना का दोआब, मगध, बंगाल, कलिंग, सौराष्ट्र, मालवा तथा दक्षिणी भारत का मैसूर तक का प्रदेश सम्मिलित था।"


12. मृत्यु : चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग 24 वर्ष शासन किया। प्रारम्भ में वह ब्राह्मण धर्मावलम्बी था, पर अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में उसने जैन धर्म अपना लिया, फिर भी अन्य धर्मों के प्रति वह उदार और सहिष्णु था। अन्त में, उसने जैन साधु की भाँति उपवास और तप करके देह त्याग दी।


मूल्यांकन : डॉ० राधाकुमुद मुकर्जी के अनुसार, "मौर्य साम्राज्य का अगमन भारतीय इतिहास की एक अपूर्व घटना है। जिस कठिन समय में इस वंश ने अपनी नींव को दृढ़ किया, उस समय को देखकर तो सचमुच इसका स्थान बहुत उँचा हो जाता है। वह समय संकट का था और सिकन्दर का भारत पर आक्रमण हो चुका था।"


डॉ० वी० ए० स्मिथ के अनुसार, "मौर्यो के आगमन के साथ इतिहास के क्षेत्र में भी प्रकाश की ज्वलन्त किरणें फैलने लगती है। 18 वर्षों का लम्बा समय लगाकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने मकदूनिया के सिपाहियों को भारत की सीमा से खदेड़ा, विशेषकर पंजाब और सिन्ध की भूमि से उन्हें बाहर धकेल दिया। सेल्यूकस की शक्ति को उसने क्षीण कर दिया और स्वयं उत्तरी भारत का निर्विवाद सम्राट बना। अरियाना प्रदेश के बहुत बड़े भाग पर भी उसका अधिकार था। ये सभी विशेषतायें उसे इतिहास के महानतम और सफल शासकों के बीच स्थान देती है।"


Achievements of Chandragupta Maurya
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