1857 ई. को क्रान्ति के परिणाम - यद्यपि 1857 की क्रान्ति असफल रही, परन्तु अपने परिणामों एवं प्रभावों को दृष्टि से यह अत्यधिक महत्वपूर्ण थी। डॉ. आर. सी. मजूमदार का कथन है कि "सन् 1857 का महान विस्फोट भारतीय शासन के स्वरूप और देश के भावी विकास में मौलिक परिवर्तन लाया।" संक्षेप में 1857 ई. की क्रांति के निम्नलिखित परिणाम हुए-
1. कम्पनी शासन का अन्त: 2 अगस्त, 1858 को ब्रिटिश संसद ने एक अधिनियम पारित किया जिसके अनुसार भारत में कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया गया तथा भारत का सम्पूर्ण शासन ब्रिटेन के सम्राट को सौंप दिया गया। बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल तथा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स समाप्त कर दिए गए तथा इनके स्थान पर एक भारत सचिव की नियुक्ति को गई तथा उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक भारतीय परिषद् बनाई गई।
2. सुधारों तथा परिवर्तनों की घोषणा: 1858 में महारानी विक्टोरिया का एक घोषणा पत्र जारी किया गया जिसके अनुसार घोषित किया गया कि भविष्य में ब्रिटिश सरकार भारतीय नरेशों के राज्यों को हड़पने का प्रयास नहीं करेगी तथा उनके अधिकारी एवं मान-मर्यादा की रक्षा करेगी तथा देशी नरेशी एवं नवाबों के साथ जो समझौते किये गए है, उनका ब्रिटिश सरकार आदर करेगी। यह भी घोषित किया गया कि धार्मिक सहिष्णुता तथा स्वतंत्रता की नीति का पालन किया जायेगा। भारतवासियों के धार्मिक रीति-रिवाजों एवं विश्वासों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा। इस घोषणा पत्र में यह भी कहा गया कि भारतीयों को बिना किसी जाति तथा रंगभेद के सरकारी नौकरियां दी जायेगी तथा भारतीयों के साथ स्वतंत्रता का व्यवहार करते हुए उनकी भलाई के लिए कार्य किये जायेंगे। भारतीय नरेशी को पुत्र गोद लेने का अधिकार भी दिया गया।
3. सैनिक नीति में परिवर्तन: 1857 की क्रांति ने ब्रिटिश सरकार की सैनिक नीतियों को बड़ा प्रभावित किया। सैनिक क्षेत्र में निम्नलिखित परिवर्तन हुए-
(i) अंग्रेज सैनिकों की संख्या में वृद्धि अंग्रेजो को अब भारतीय सेना पर बिल्कुल: विश्वास नहीं रहा। अत: अंग्रेज सैनिकों की एक विशाल सेना रखने का निश्चय किया गया। भारत में अंग्रेज सैनिकों की संख्या बढ़ाई गई। 1856 में अंग्रेज सैनिकों की संख्या 45.332 थी परन्तु 1862 में अंग्रेज सैनिकों की संख्या बढ़कर 91,897 हो गई। इसके विपरीत भारतीय सैनिकों की संख्या में कमी की गई।
(ii) तोपखाने पर अंग्रेजों का नियन्त्रण: 1857 की क्रान्ति के बाद तोपखाना पूर्णतया अंग्रेज सैनिकों के नियंत्रण में रखा गया। भारतीय सैनिकों के हाथों में न तो गोला-बारूद ही रहने दिया गया और न ही उन्हें उत्तम अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित किया गया।
(iii) जातीयता तथा साम्प्रदायिकता के आधार पर भारतीय सेना का गठन: जातीयता एवं साम्प्रदायिकता के आधार पर भारतीय सेना का पुनर्गठन किया गया। भारतीया को गोरखे, मराठे, राजपूत, जाट, सिक्ख, डोगरे, पठान आदि में बाँट दिया गया ताकि उनमें राष्ट्रीयता तथा एकता की भावना विकसित न हो सके। भारतीय सैनिकों को दूर-दूर क्षेत्रों में भेजा गया ताकि स्थानीय लोगों से उनका सम्पर्क स्थापित न हो सके।
4. अंग्रेजों तथा भारतीयों के बीच कटुता: 1857 की क्रांति ने भारतीयों और अंग्रेजो के बीच कटुता उत्पन्न कर दी। अंग्रेजों ने क्रान्ति का दमन करने के लिए जो बर्बरतापूर्ण कार्य किये थे उनसे भारतवासियों में तीव्र आक्रोश व्याप्त था। वे अंग्रेजों के अत्याचारों को कभी नहीं भुला सके। दूसरी ओर अंग्रेज भी भारतवासियों को विश्वासघाती समझने लगे। इस प्रकार दोनों जातियाँ एक-दूसरे को सन्देह तथा घृणा की दृष्टि से देखने लगी। इस घृणा और अविश्वास का देश की राजनीति तथा प्रशासन पर बुरा प्रभाव पड़ा।
प्रो. गुरुमुख निहालसिंह का कथन है कि 'ब्रिटिश भारत के इतिहास में 1857 क विद्रोह ने एकदम काया पलट दी। शासकों और शासितों के संबंध पूरी तरह बदल गए। अंग्रेजों के हृदय में भारतवासियों के प्रति अविश्वास भर गया और जनता के प्रति नीति बदल गई।'
5. 'फूट डालो और शासन करो' की नीति: अंग्रेज शासकों ने भारत में अपने साम्राज्य को बनाए रखने के लिए फूट डालो और शासन करो' की नीति को अपनाना उचित समझा। अतः उन्होंने हिन्दुओं तथा मुसलमानों में फूट डालने का प्रयास किया। उन्होंने भारतीय नरेशों, जमीदारों तथा सामन्तों को विशेष पुरस्कार, उपाधियां आदि प्रदान की ताकि वे ब्रिटिश सरकार के प्रति स्वामीभक्त बने रहे। अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो" की नीति के कारण भारतीय भारतीय के बीच खाई उत्पन्न हो गई।
6. हिन्दुओं और मुसलमानों में मतभेद: 1857 की क्रांति में हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने संयुक्त रूप से भाग लिया परन्तु क्रांति की विफलता के लिए दोनी जातियाँ एक-दूसरे को उत्तरदायी ठहराने लगी। मुसलमानों ने क्रांति में हिन्दुओं से अधिक उत्साह दिखाया। अतः क्रान्ति के बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों के प्रति कठोर रुख अपनाया जिससे हिन्दुओं तथा मुसलमानों के बीच दरार उत्पन्न हो गई। अंग्रेजी ने अपनी फूट डालो और राज करो की नीति में हिन्दुओं तथा मुसलमानों के बीच उत्पन्न हुई कटुता को और बढ़ा दिया।
7. प्रशासन पर प्रभाव: 1857 की क्रान्ति के बाद भारतीयों को प्रशासन में बलको तथा सहायकों के पदों पर नियुक्त किया जाने लगा। अंग्रेजी सरकार यही चाहती थी कि ये भारतीय कर्मचारी अंग्रेजों के स्वामीभक्त तथा आजाकारी बने रहे। उसकी नीति सफल रहो तथा भारतीय कर्मचारी अंग्रेजों के प्रति निष्ठावान बन गए। इससे अंग्रेजी सरकार का प्रशासनिक दृष्टि से भारत पर कब्जा मजबूत हो गया तथा जिन्होंने विरोध किया, उन्हें अंग्रेजी ने कुचलने का निश्चय कर लिया। उन्होंने भारत में धर्म के नाम पर झगड़े करवाना शुरू किया।
8. राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन: 1857 की क्रान्ति ने भारतीय राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन दिया। : इस क्रांति ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार किया और उन्हें एकता तथा संगठन का पाठ पढ़ाया। नाना साहब, झांसी की रानी, तात्या टोपे, बहादुरशाह, कुंवर सिंह आदि के त्याग और बलिदान से भारतीयों को प्रेरणा मिली और उनमें देशभक्ति, साहस आदि की भावनाएं विकसित हुई। इस प्रकार 1857 की क्रान्ति ने भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए पृष्ठभूमि का कार्य किया।
9. भारतीयों को लाभ: 1857 की क्रांति से भारतीय लाभान्वित भी हुए। सेपेल गिफिन का कथन है कि 1857 के विद्रोह से अधिक भाग्यशाली घटना अन्य कोई नहीं घटी। इसने भारतीय गगनमण्डल को अनेक शकाओं से मुक्त कर दिया। अशोक मेहता का कथन है कि "1857 की क्रान्ति ने हमारे राष्ट्रीय जीवन के प्रवाह को बदल दिया।" अपेजा ने क्रांति के दौरान भारतवासियों पर जो भारी अत्याचार किये थे, उनसे भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति अविश्वास व आक्रोश और अधिक बढ़ गया। इस स्थिति ने भारत में राष्ट्रीयता की भावना को विकसित किया। 1857 की क्रांति के दमन के पश्चात् अंग्रेजी सरकार का ध्यान देश की आन्तरिक दशा सुधारने की और उन्मुख हुआ। भारत के इतिहास में यहीं से संवैधानिक विकास का सूत्रपात हुआ और धीरे-धीरे भारतीयों को अपने देश के शासन में भाग लेने का अवसर मिलने लगा। वास्तव में 1857 से भारत में आधुनिक युग का प्रारम्भ होता है। अंग्रेजों को 1861 में अधिनियम पास करके भारतवासियों को शासन तथा कानून निर्माण की प्रक्रिया में भागीदार बनाना पड़ा, जो 1857 ई की क्रांति की विशिष्ट उपलब्धि थी।
10. मुगल वंश का अन्त: 1857 की क्रांति के फलस्वरूप भारत में मुगल वंश का अन्त हुआ। मुगल सम्राट बहादुरशाह को बन्दी बनाकर रंगून भेज दिया गया जहाँ 1862 में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के साथ ही भारत पर मुगलों के शासन का वैधानिक एवं व्यावहारिक रूप में अन्त हो गया।
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