Monday, 30 August 2021

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Iqta system in the Sultanate period

'इक्ता' का अर्थ होता है - किसी भूमि के टुकड़े या गाँव के लगान का अनुदान। सल्तनत कालीन सुल्तान कुछ इलाके या गांव का लगान किसी प्रमुख सेनापति या अन्य अधिकारी को सौंप देता था। वह व्यक्ति इक़्ते का मालिक होता था और इक़्तेदार कहलाता था। दिल्ली सुल्तानों द्वारा जारी यह एक नई प्रथा थी जिसके अनुसार वे नगद वेतन देने के स्थान पर कुछ गांव या किसी क्षेत्र की भूमि का लगान प्राप्त करने का अधिकार किसी अधिकारी को उसकी सेवाओं के बदले में अनुदान के रूप में देते थे। यह अनुदान पैतृक सम्पति नहीं थी। इसको एक अधिकारी से लेकर दूसरे को दे दिया जाता था किन्तु सुल्तान के कमजोर होने पर यह अनुदान पैतृक सम्पत्ति बन जाती थी।

इक़्तेदार को अपने इक्ते (अनुदान में प्राप्त भू-राजस्व का क्षेत्र) में कानून व्यवस्था तथा शांति एवं अमन-चैन बनाये रखने की जिम्मेदारी निभानी होती थी। वहीं सारे इलाके से लगान वसूल करता था और उससे अपने क्षेत्र की सुल्तानी सेना एवं अधिकारियों का खर्च चलाता था। सम्पूर्ण हिसाब-किताब के साथ शेष रकम को सुल्तान के पास भेज दिया जाता था। उसे एक स्थायी सेना भी रखनी पड़ती थी। परंतु इक़्तेदार पूर्णतया शक्तिशाली मालिक नहीं होता था। वह तभी तक अपने पद पर बना रहता था जबतक सुल्तान चाहता था। उसे प्रायः एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेज दिया जाता था ताकि वह अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली नहीं बन सके और विद्रोह कम हो। जब सुल्तान कमजोर होता था तो कई बार इक़्तेदार बहुत अधिक शक्तिशाली हो जाते थे। कभी जब सुल्तान अन्य समस्याओं के हल में लगे होते थे तब कई इक़्तेदार नियमित रूप में हर वर्ष समय पर सुल्तान को हिसाब-किताब या तो भेजते ही नहीं थे या मनमानी ढंग से आय-व्यय का लेखा-जोखा बनाकर भेज देते थे। 

कई तुर्क सुल्तान के लिए उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना आसान नहीं था। इतिहासकार जियाउद्दीन बर्नी के अनुसार अल्तमश के बाद हर इक़्तेदार अपने-अपने इलाके की आमदनी को स्वतः ही भोगना चाहता था। बलवन जैसे शक्तिशाली शासक को यह सिद्धांत पुनः स्थापित करने के लिए कि इक़्तेदारी  केवल सुल्तान का प्रशासनिक एवं सैनिक प्रतिनिधि मात्र ही है, बहुत कठोर परिश्रम करना पड़ा था। इस प्रणाली को अर्द्ध-जागीर प्रथा तथा आंशिक सामंत प्रणाली कहा जा सकता है। जागीरदारो की तरह इक़्तेदार स्थाई और वंशानुगत अधिकार का उपभोग अपने इक़्ते पर नहीं करता था। सामंतों की तरह इक़्तेदार किसानों से बेगार लेने एवं उन्हें तंग करने के लिए पूर्णतया स्वतंत्र नहीं थे। उनका पद अस्थायी तथा सुल्तान के प्रसादपर्यंत था। इतना होने के वाबजूद भी इक़्तेदारो के पास प्रायः काफी धन रहता था और वे शान-शौकत तथा ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतित करते थे। 

इल्तुतमिश का एक महत्वपूर्ण योगदान इक़्तेदारी व्यवस्था की स्थापना करना था। पूरे राज्य को छोटी-छोटी इकाईयों में विभक्त कर दिया। इन इकाइयों को इक्ता की संज्ञा दी गई। इनके अधिकारी इक़्तेदार कहलाए। इक़्तेदारो की विभिन्न श्रेणियां थी। बड़े इक़्तेदार प्रांतीय गवर्नर के रूप में काम करते थे। उन्हें सैनिक, पुलिस और न्यायिक अधिकार प्राप्त थे। लगान वसूली का काम भी वे देखते थे। छोटे इक़्तेदार केवल सैनिक कार्य करते थे। इक़्तेदारो को उनकी सेवा के बदले में अपने-अपने क्षेत्र से लगान वसूलने का अधिकार दिया गया जिसका कुछ भाग वे अपने खर्च के लिए रख सकते थे। इक़्तेदारी व्यवस्था ने पहले की प्रचलित सामंत व्यवस्था को समाप्त कर दिया। इक़्तेदारो पर केंद्र का नियंत्रण स्थापित किया गया। समय-समय पर उनका स्थानांतरण भी होता था। यद्यपि इक़्तेदारी व्यवस्था में बाद में अनेक दुर्बलताएँ प्रविष्ट कर गई परंतु आरंभ में इस व्यवस्था द्वारा केंद्रीय शक्ति को मजबूती प्रदान करने में सहायता मिली। 

Iqta system in the Sultanate period
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